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________________ रासाका महत्व "संवत् १७१६ मिति कार्तिक वदी २१ शनिवार ता. २३ मा. मुहर्रम सन् १०७० लिखाइत पठनार्थे फतैहचंद लिखतं भीखा" मुंफणसे हमें तीन अन्योंकी प्रतियां मिली थी उनमेंसे बुद्धिसागर ग्रन्थ भी इसीका लिखित है "सम्वत १७१६ मिती आसोज सुदी १४ बार सोमवार ता. ११ मास मुहर्रम सं. १०७० पौथी लिखाइत पठनार्थ फतहचन्द लिखतं मीश्रदेव । श्रीमालशकगोत्र संभवत । श्री हिन्दुस्तानी एकेडेमी संग्रह वाली प्रति भी फतेहचन्दकी है। संभवतः दोनों फतेहचन्द एक हो । फतेहचन्दको जान कविकी रचनानोंसे छोटी उनसे ही प्रेम रहा प्रतीत होता है । एकेडेमीकी प्रतिसे कामलता ग्रन्थका पुष्पिकालेख नीचे दिया जाता है - ___ "सम्बत् १७७८ मिती कातका सुदी र विसपतिवार हसतखत फतेहचन्द ताराचन्दका डीडपानिया पोथी फतेहचन्दकै घरकी । श्री। श्री । क्यामखां रासाका महत्त्व क्यामखां रासा अनेक दृष्टियोंसे महत्त्वपूर्ण है। साहित्यकी दृष्टिसे यद्यपि उसकी तुलना पृथ्वीराज रासा, संदेश रासा आदिसे नहीं की जा सकती, तथापि यह तो मानना ही पड़ता है कि उसकी शैलीमें एक विशेष प्रवाह है। प्रेमपूर्ण आख्यायिकाओं और प्राकृतिक वर्णनोंसे जान भी इसे सुसज्जित कर सकता था, वह वीर रसका ही नहीं शृंगार रसका भी कवि था, किन्तु उसने सरल श्रोजस्विनी भाषामें ही अपने वंशके इतिहासको प्रस्तुत करना उचित समझा, उसने यथाशक्ति मितभाषिता और सत्यका आश्रय लिया ।' जानने जहां वहां सुन्दर पद्य भी लिखे हैं। जिनमें कुछ यहां प्रस्तुत किये जाते हैं यांकै बानही बने, देखहुँ जियहि विचार । जो बांकी करवार है, तो बांको परवार ॥ यांकसी सूधो मिले, तो नाहिन ठहराइ । ज्यों कमान कवि जान कहि, वानहिं देत चलाइ ॥ कहा भयो कवि जान कहि, वैरी बकीय कुवात । कवके गिर गिर कहात हैं, पै गिर ना गिर जात ॥ १ कहत जान अब वरनिहाँ, अलिफखांनकी जात । पिता जान बदि न कहों, भाखों साची बात ॥
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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