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________________ ३२ क्यामखां रासा - भूमिका मौसम ठीक हुआ तो फिर सेना कंधार लेने गई पर उसके हाथ न थाने पर वापिस सेनाको काबुल लौटना पड़ा । तीसरी बार बादशाहने फिर सेनाको भेजा। कंधार में घमासान युद्ध होने लगा। दौलतख दीवान भी चढाई के दौरे करता था। इसी बीच उसे ज्वर हो गया और कुछ दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई । वि० सं० १७१०, हिजरी में दीवानको मृत्यु हुई। बादशाहने दिलासा दे कर ताहरखांको सिरोपा दे कर स्वदेश बिदा किया । सरदारखां अपने वतन लौट कर सुखपूर्व के राज्य करने लगा । सरदारखां और पूरनखां चिरायु हों । प्रस्तुत रासा यहीं समाप्त होता है। पं. भावरमलजी शमर्कि लेखानुसार, 'शजतुल मुसलमीन' और 'तारीख खानजहानी' ग्रन्थ इसी रासाके अनुसार बने हैं और उपर्युक्त सरदारखांके (१७१०-३७) बाद दोनदारखां (सं. १७३० से ६० ), सरदारखां हि. (१७६०-८६) कामयाबखां ' (१७८६-८८) फतहपुर के नवाब हुए। अंतिम सरदारखांने अपना विरुद्ध 'सवाई क्यामखां' रखा और यही अंतिम नवाब हुया | सीकरके सामन्त राव शिवसिंह सेखावतने उसे पराजित किया धौर सं. १७८८ में स्वयं फतहपुरका स्वामी बना । फतहपुर परिचयसे सरदारखांके परवर्तीय नवाबोंका वृतांत परिशिष्ट में दिया गया है। 8 क्यामखां रासाकी प्रतिका परिचय | हमें प्राप्त प्रतिके अनुसार ग्रन्थका नाम " रासा श्री दीवान श्रलिफखाँका " है । पुरोहित हरिनारायणजी, पं. भावरमलजी व फतहपुर परिचय श्रादिके लेखकोंने इसका नाम " कायमरासा" लिखा है । इसका प्रधान कारण यहीं प्रतीत होता है कि इसमें क्यामखानी नवायका इतिहास है वल लिफखौका ही नहीं । हमें यह प्रति झुमण के जैन उपासरेसे मिली थी। इसकी अन्य प्रति स्व. पुरोहित जीके पास होनेका जानने में श्राया तव पुरोहितजींसे पूछा गया तो आपने उत्तर दिया कि कोई सज्जन मेरे यहाँसे ले गये थे, उन्होंने वापिस लौटानेकी कृपा नहीं की । श्रतः इसका सम्पादन हमारे संग्रहकी एक मात्र प्रतिसे ही किया गया है । प्रति बहुत शुद्ध एवं रचनासमयके आसपास की ही लिखित है । अतः हमें कोई दिक्कत नहीं हुई । 1 प्राप्त प्रति पुस्तकाकारके ७० पत्रों में है । साइज || ८|| है | प्रत्येक पृष्ठमें १६ से १८ पँक्तियां व प्रति पंक्ति अक्षर १८ के लगभग हैं । गणनासे ग्रन्थ परिमाण १३५० श्लोकका होता है । यद्यपि इस प्रतिमें लेखन - सम्वत् नहीं दिया गया है, पर हमारे संग्रहकी दीवान अलफखकी पैड़ी और उसके लेखक एक ही हैं । अतः उसकी पुष्पिका नीचे दे दी जाती है १ फतहपुर - परिचयमें सरदारखाकी विद्यमानतामें कामयाबखाके २ वर्ष राज्य करनेका लिखा है पर यह कुचामण चला गया था। वहीं मरा । अव भी वहां इसके वंशज विद्यमान हैं । झाबरमलजीने वीचमें एक काम और दिया है पर ठीक नहीं है ।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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