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________________ रासाका ऐतिहासिक कथा-सार जिससे भविष्यमें कोई दरबारमें वेअदबी न करे । अमरसिंहके जो सेवक आगरेमें थे वे सबके सब लड मरे, कोई भी न भागा । रावजीका कुटुंब नागौर में था। बहुतसे जोधावत पालमें थे अतः उनके त्रासके कारण नागौर लेनेकी किसीने भी स्वीकृति नहीं दी । आखिर वीर ताहरखाने नागौरके लिए बीड़ा उठाया । बादशाहने नागौरका पट्टा लिख कर दौलतखांको काबुलसे बुलानेके लिए फरमान भेजा और मनसब भी ड्योढा कर दिया। एक दिन बादशाहने ताहरखांसे पूछा- काबुलसे अपने पिताके आने पर नागौर जाओगे या पहले ही जा कर राठौड़ोंको निकालोगे? ताहरखांने कहा "आपका फरमान मस्तक पर है। मैं अभी जाकर नागौर दखल करता हूँ।" बादशाहने नागौर दे कर उसे बड़ा उमराव बनाया और सिरोपाव दे विदा किया । ताहरखांके पुत्र सरदारखांको बादशाहने मनसव दे कर अपने पास रक्खा । ताहरखाने स्वदेश लौट कर वडी भारी सेनाके साथ नागौरकी ओर प्रयाण किया। ___ताहरखांके नागौर आने पर जोधोने गढ खाली कर दिया । ताहरखाने उस पर कब्जा कर लिया और अमरसिंहके स्थान पर जैगढ़में रहने लगा । चार मासके बाद दीवान दौलतखां भी काबुलसे श्रा पहुंचा और पिता-पुत्र दोनों पानंदपूर्वक नागौरमें रहने लगे। ७-८ महीनेके अनन्तर बादशाहने फरमान भेजा कि फरमान पाते ही तुम शीघ्रतासे पेशावर जाओ। शाहजादा वहांसे बलख लेनेके लिए जायेगा, तुम भी उसके साथ जा कर फतह करो । शाही फरमान पाते ही दीवानजीने प्रयाण किया और ताहरखां नागौरमें ही रहा । ८ मास नागौरमें सुख-पूर्वक उसने बिताए । जब ताहरखांने फौजके बलख जानेकी बात सुनी तो उसने बादशाहके पास लाहौर अरज भेजी कि हुक्म हो तो मैं हाजिर होऊ । बादशाहने उसे बलख भेज दिया। छोटे शाहजादेने कटकके साथ बलखको फतह कर लिया। दोनों शाहजादोने दक्षिणी रुस्तमखां और दीवान दौलतखांको इंदवह स्थानमें भेज दिया। शाहजादेके पास बलखमें ताहरखां था । श्रायु पूर्ण हो जानेसे युवावस्थामें हो अचानक उसकी मृत्यु हो गई । नगरमें ताबूत पाने पर हाहाकार मच गया । पिता दौलतखांको बड़ा दुःख हुा । बादशाहने सुन कर दुःख प्रकट किया और सलावतखांको बुला कर दिलासा दिया। बलखसे शाही सेना लौट कर काबुल आई तो वादशाहने कंधार विजय करनेकी आज्ञा दी, और कुमुक भेजी । इधर शाहजहांकी सेना और उधर शाह अब्बासकी सेना परस्पर लढने लगी। जब शाही सेनाके पैर उखड़ते देखे तो रुस्तमखां दक्षिणी और दीवान दौलतखां रणक्षेत्रमे उतर पढे और उन्होंने शत्रुसेनाको परास्त कर दिया । जब शीतकालमें बरफ़ जमने लगी तो शाही सेना कंधार छोड कर काबुल आ गई । जब १ राज्यकाल सं० १६८३ से १७१० इनके नामसे रचित 'टउलितविनोदसारसंग्रह' नामक विशाल वैद्यक-ग्रन्थकी अपूर्ण प्रति अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेरमे उपलब्ध है । इसकी पूरी प्रति अन्वेषणीय है। आपका चित्र फतहपुर परिचयमें प्रकाशित है। २ फवि जानने बड़े ही करुण शब्दोमे विलाप किया है।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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