SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : १० : पंडित सुखलालजी विस्तर पर सोकर सुखलालजीने सब कुछ सहा और अपने अभीष्ट मार्ग. पर डटे रहे । पंडितजीके पास एक गरम स्वीटर था । जीवनमें पहली बार उन्होंने उसे खरीदा था । कड़ाके की सर्दी थी। गुरुजीने स्वीटरकी वड़ी तारीफ़ की । पंडितजी ताड़ गये । सर्दीसे खुदके ठिठुरनेकी परवाह न कर उन्होंने वहे ... स्वीटर गुरुजीकी सेवामें सादर समर्पित कर दिया, और खुदने घासके विस्तर और जर्जरित कंवल पर सर्दीके दिन काट दिये । ____ शुरू-शुरूमें पंडितजी मिथिलाके तीन चार गाँवों में अध्ययन-व्यवस्थाके लिये धूमे । अंतमें उन्हें दरभंगामें महामहोपाध्याय श्री. बालकृष्ण मिश्र नामक गुरु मिल गये, जिनकी कृपासे उनका परिश्रम सफल हुआ। मिश्रजी पंडितजीसे उम्रमें छोटे थे, पर न्यायशास्त्र और सभी दर्शनोंके प्रखर विद्वान थे। साथ ही वे कवि भी थे और सबसे बड़ी बात तो यह थी कि वे अत्यंत सहृदय एवं सज्जन थे । पंडितजी उन्हें पाकर कृतकृत्य हुए और गुरुजी भी · ऐसे पंडितशिष्यको पाकर अत्यंत प्रसन्न हुए । तत्पश्चात् श्री० बालकृष्ण मिश्र वनारसके ओरिएन्टल कालेजके प्रिन्सिपल नियुक्त हुए । उनकी सिफारिशसे महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी और आचार्य आनंदशंकर ध्रुवने सन् १९३३ में पंडितजीको जैन-दर्शनका अध्यापक नियुक्त किया । वनारसमें अध्यापक होते हुए भी पंडितजी श्री. वालकृष्ण मिश्रके वर्गमें यदा कदा उपस्थित रहा करते थे । यह था पंडितजीका जीवंत विद्यार्थी-भाव । आज भी पंडितजीके मन पर इन गुरुवर्यके पांडित्य एवं सौजन्यका वडा भारी प्रभाव है । उनके नाम-स्मरणसे ही पंडितजी भक्ति, श्रद्धा एवं आभारकी भावनासे गदगद हो जाते हैं । इस प्रकार वि० संवत् १९६० से १९६९ तकके नौ वर्ष पंडितजीने गंभीर अध्ययनमें व्यतीत किये थे। उस समय उनकी अवस्था ३२ वर्षकी थी। उसके बाद अपने उपार्जित ज्ञानको विद्यार्थीवर्ग में वितरित करनेका पुण्य कार्य उन्होंने शुरू किया । यहाँ एक वस्तु विशेष उल्लेखनीय है कि अपने अध्ययन-कालमें पडितजी मात्र विद्योपार्जनमें ही नहीं लगे रहे । वंगभंगसे प्रारंभ होकर विविध रूपोंमें विकसित होनेवाले हमारे राष्ट्रीय आन्दोलनसे भी वे पूर्णतः अवगत रहे । तदुपरान्त देशकी सामाजिक एवं धार्मिक समस्याओं पर भी उन्होंने चिंतन
SR No.010642
Book TitlePandit Sukhlalji Parichay tatha Anjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandit Sukhlalji Sanman Samiti
PublisherPandit Sukhlalji Sanman Samiti
Publication Year1957
Total Pages73
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy