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________________ संक्षिप्त परिचय किया। इस प्रकार पंडितजीकी दृष्टि शुरूसे ही व्यापक थी । निःसंदेह यह उनकी जाग्रत जिज्ञासाका ही फल था । अध्यापन, ग्रंथरचना तथा अन्य प्रवृत्तियाँ __ श्री. वाबू दयालचंदजी जौहरी आदि उत्साही एवं भावनाशील नवयुवकोंसे आर्कषित होकर अव पंडि.जीने बनारसके बदले आगराको अपना प्रवृत्ति केन्द्र बनाया । वहाँसे वे आसपासके शहरोंमें मुनियोंको पढ़ानेके लिये चार-छः मास जा आते और फिर आगरा वापस आकर अध्ययन-अध्यापन करते । इस प्रकार तीन-चार वर्ष बीते । इतनेमें महात्मा गांधीके प्रसिद्ध सत्याग्रह-संग्रामकी दुंदुभि देशके कोने-कोनेमें बजने लगी । पंडितजी उससे अलिप्त कैसे रह सकते थे ? उन्हें भी वापूके कर्मयोगने बेहद आकर्पित किया । प्रारंभमें अहमदावादके कोचरव आश्रममें और तत्पश्चात् सत्याग्रह-आश्रम, साबरमतीमें वापूके साथ रहने पहुँचे । वहाँ सबके साथ चक्की पीसते और अन्य श्रम-कार्य करते । गांधीजीके साथ चक्की पीसते पीसते हाथमें फफोले उठनेकी बात आज भी पण्डितजी आनन्दके साथ याद करते हैं। किन्तु थोड़े ही समयके बाद उन्होंने यह अनुभव किया कि उनके जैसे पराधीन व्यक्तिके लिये वापूके कर्मयोगका पूर्णतः अनुसरण संभव नहीं है । इस वास्ते विवश होकर फिर चे आगरा लौटे, पर उन पर चापूका स्थायी प्रभाव तो पड़ा ही। वे सादगी और स्वावलंबनके पुजारी बने । पीसना, वर्तन मलना, सफ़ाई करना वगैरह स्वावलंबनके कामोंको करनमें उन्हें आनंद आने लगा । यह वि० सं० १९७३ की बात है। इन दिनों जीवनको विशेष संयमी बनानेके लिये पंडितजीने पांच वर्ष तक घी-दूधका भी त्याग किया और खाने-पीनेकी झंझटसे छुट्टी पाने और ज्यादा खर्चसे बचनेके लिये उन्होंने अपनी खुराकको विलकुल सादा वना लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि सन् १९२० में पंडितजीको बवासीर के भयंकर रोगने आ घेरा और वे मरते-मरते ज्यों-त्योंकर बचे । तवसे पंडितजीने शरीर-सँभालनका पदार्थपाठ सीखा। ___अवतक तो पंडितजी अध्यापन-कार्य ही करते थे, पर वि० सं० १९७४ में एक बार शांतमूर्ति सन्मित्र मुनि श्री कर्पूर विजयजीने पंडितजीके मित्र व्रजलालजीसे कहा कि-" आप तो कुछ लिख सकते हैं, फिर आप लिखते क्यों नहीं ? सुखलालजी लिख नहीं सकते, इसलिये वे पंडितोंको तैयार करनेका कार्य करें ।” पंडितजीको यह बात लग गई। उन्हें अपनी विवशता बहुत खटकी । उन्होंने सोचा-“मैं स्वयं लिख नहीं सकता तो क्या हुआ?
SR No.010642
Book TitlePandit Sukhlalji Parichay tatha Anjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandit Sukhlalji Sanman Samiti
PublisherPandit Sukhlalji Sanman Samiti
Publication Year1957
Total Pages73
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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