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________________ चारित्रमोहनीयकी उपशमना ३५५ उदय और उदीरणाका विच्छेद हूं। जाता है। तथा अप्रत्याख्यानावरमान और प्रत्याख्यानावरणमानका उपशम हो जाता है । उस समय सज्वलनमानकी प्रथम स्थितिगत एक आवलिका प्रमाण दलिकों और उपरितन स्थितिगत एक समय कम दो श्रावलिका कालमें बद्ध दलिकोको छोडकर शेप दलिक उपशान्त हो जाते हैं । तदनन्तर प्रथम स्थितिगत एक श्रावलिका, प्रमाण दलिकोका स्तिवक मक्रमके द्वारा क्रमसे सज्वलन मायामें निक्षेप करता है और एक समय कम दो आवलिकाकालमें वद्ध ढलिकोका पुरुषवेदके ममान उपशम करता है और परप्रकृति - रूपसे सक्रमण करता है । इस प्रकार अप्रत्याख्यानावरण मान और प्रत्याख्यानावरण मानके उपशम होनेके बाद एक समय कम st आवलिका कालमें सज्वलन मानका उपशम हो जाता है । जिस समय सज्वलन मानके बन्ध उदय और उदीरणाका विच्छेद हो जाता है उसके अनन्तर समयसे लेकर सज्वलन मायाकी द्वितीय स्थितिसे दलिको को लेकर उनकी प्रथम स्थिति करके are करता है । तथा उसी समयसे लेकर अप्रत्याख्यानावरण माया प्रत्याख्यानावरण माया और सज्वलन मायाके उपशम करनेका एक साथ प्रारम्भ करता है । सज्वलन मायाकी प्रथम स्थिति में एक समय कम तीन आवलिका कालके शेप रहने पर श्रप्रत्याख्यानावरण माया और प्रत्याख्यानावरण मायाके इलिकोका सन्चलन मायामे प्रक्षेप न करके सज्वलन लोभमें प्रक्षेप करता है । दो आवलिका शेप रहने पर आगाल नहीं होता किन्तु केवल उदीरणा ही होती है। एक आवलिका वालके शेप रहने पर संचलन मायाके बन्ध, उदय और उदीरणाका विच्छेद हो जाता है तथा प्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण मायाका उपशम हो जाता है । उस समय संज्वलन मायाकी प्रथम स्थिति
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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