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________________ सप्ततिकाप्रकरण समय सज्वलन क्रोधकी प्रथम स्थितिगत एक आवलिका प्रमाण दलिकोको और उपरितन स्थितिगत एक समय कम दो श्रावलिका कालके द्वारा बद्ध दलिकोको छोड़कर शेष दलिक उपशान्त हो जाते है। तदनन्तर प्रथम स्थितिगत एक आवलिका प्रमाण दलिकोका स्तिबुकसक्रमके द्वारा क्रमसे संज्वलन मानमें निक्षेप करता है और एक समयकम दो आवलिकालमै बद्ध दलिकोका पुरुपवेदके समान उपशम करता है और परप्रकृतिरूपसे संक्रमण करता है । इस प्रकार अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण क्रोधके उपशम होनेके बाद एक समय कम दो आवलिका कालमें संज्वलन क्रोधका उपशम हो जाता है। जिस समय संज्वलन क्रोधके वन्ध, उदय और उदीरणाका विच्छेद होता है उसके अनन्तर समयसे लेकर संज्वलन मानकी द्वितीय स्थितिसे दलिकोको लेकर उनकी प्रथम स्थिति करके वेदन करता है। प्रथम स्थिति करते समय उदय समयमें सबसे थोड़े दलिकोंका निक्षेप करता है। दूसरे समय असंख्यातगुणे दलिकोंका निक्षेप करता। तीसरे समयमै इससे असंख्यातगुणे दलिकोका निक्षेप करता है। इस प्रकार प्रथम स्थितिके अन्तिम समय तक उत्तरोत्तर असख्यातगुणे दलिकोका निक्षेप करता है। प्रथम स्थिति करनेके प्रथम समयसे लेकर अप्रत्याख्यानावरणमान, प्रत्याख्यानावरणमान और संज्वलनमानके उपशम करनेका एक साथ प्रारम्भ करता है। सज्वलन मानकी प्रथम स्थितिमे एक समय कम तीन आवलिका कालके शेष रहने पर अप्रत्याख्यानावरण मान और प्रत्याख्यानावरण मानके दलिकोका संज्वलन मानमें प्रक्षेप न करके संन्वलन माया आदिमें प्रक्षेप करता है। दो आवलिकाके शेष रहने पर आगाल नहीं होता किन्तु केवल उदीरणा ही होती है। एक आवलिका कालके शेष रहने पर सज्वलनमानके वन्ध,
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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