SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरित्रमोहनीयकी उपशमना ३५३ स्थितिमें दो आवलिका काल शेप रहने तक ही होता है। तथा इसी समयसे छह नोकपायोंके दलिकोंका पुरुषवेद में क्षेपण न करके मज्वलन क्रोधादिकमें नेपण करता है। हास्यादि छहका उपशम हो जाने के बाद एक समय कम दो आवलिझाकालमें सकल पुरुपवेदका उपशम करता है। पहले समयमे सबसे थोडे दलिगोका उपशम करता है। दूसरे ममयमे असख्यातगुणे दलिकोका उपशम करता है । तीमरे ममयमै इससे अमख्यातगुणे दलिकोका उपशम करता है। दो ममय कम दो आवलियोंके अन्तिम समय तक इसी प्रकार उपशम करना है। तथा दो समय कम दो आवलि काल तक प्रति समय यथाप्रवृत्त सक्रमके द्वारा पर प्रकृतियोंमे दलि कोका निक्षेप करता है। पहले ममयमे बहुत दलिकोका निक्षेप करता है। दूसरे समयमें विशेप हीन दलिकोका निक्षेप करता है। नीमरे समयमै इससे विशेष हीन दलिकोंका निक्षेप करता है । अन्तिम ममय तक इसी प्रकार जानना चाहिये । जिस समय हास्यादि छहका उपशम हो जाता है और पुरुपवेदकी प्रथम स्थिति नीण हो जाती है उसके अनन्तर समयसे अप्रत्याच्यानावरण क्रोध, प्रत्याख्यानावरण क्रोध और सज्वलन क्रोधके उपशम करनेका एक साथ प्रारम्भ करता है। नथा संज्वलन क्रोधकी प्रथम स्थितिमें एक समय कम तीन आवलिका शेष रह जानेपर अप्रत्याख्यानावरण क्रोध और प्रत्याख्यानावरण क्रोधके दलिकोका संज्वलन क्रोधमें निनेप न करके संज्वलन मानादिकमें निक्षेप करता है । तथा दो श्रावलि कालके शेष रहने पर आगाल नहीं होता है किन्तु केवल उदीरणा ही होती है। और एक श्रावलिश कालके शेप रह जाने पर संज्वलन क्रोधके बन्ध, उदय और उदीरणाका विच्छेद हो जाता है और अप्रत्याख्यानावरण क्रोध तथा प्रत्याख्यानावरण क्रोधका उपशम हो जाता है। उस
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy