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________________ ૨૦ , सप्ततिकाप्रकरण, तथा २४ प्रकृतिक उदयस्थान एकेन्द्रियोके ही होता है अतः वह भी इसके नहीं बतलाया । इस प्रकार इन चार उदयस्थानों को छोड़ कर शेप:२१, २५, २६, २७, २८, २९, ३० और ३१ ये आठ उदयस्थान इसके होते हैं यह सिद्ध हुआ। अब इन उदयस्थानो के भंगो का विचार करने पर इनके कुल भंग ७६७१ प्राप्त होते है क्यो किं १२ उदयस्थानोके कुल भंग ७७९१ हैं सो इनमेसे १२० भंग कम हो जाते हैं, क्योंकि, उन भंगोका सम्बन्ध संत्री पंचेन्द्रिय पर्याप्तसे नहीं हैं । कुल सत्त्वस्थान १२ हैं पर यहाँ ९ और ८ ये दो सत्त्वस्थान सम्भव नहीं, क्योकि वे केवली के ही पाये जाते है। हॉ इनके अतिरिक्त ९३, ९२, ८९, ८८, ८६,८०,७९, ७८, ७६ और ७५ ये दस सत्त्वस्थान यहाँ पाये जाते है सो २१ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानोके क्रमश ८ और २८८ भंगोंमें से तो प्रत्येक भगमें ९२, ८८, ८६, ८० और ७८ ये पाँच पाँच सत्त्वस्थान ही पाये जाते हैं। इस प्रकार चौदह जीवस्थानोमे कहां कितने बन्धादिस्थान और उनके भंग होते है इसका विचार किया। अब उनके परस्पर संवेधका विचार करते हैं-सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक जीवोके २३ प्रकृतिक बन्धस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयके रहते हुए ९२, ८८, ८६, ८० और ७८ ये पांच सत्त्वस्थान होते है। तथा इसी प्रकार २४ प्रकृतिक उदयस्थानमें भी पांच सत्त्वस्थान होते हैं । इस प्रकार दोनो उदयस्थानोके कुल सत्त्वस्थान १० हुए.। तथा इसी प्रकार २५, २६, २९ और ३० प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले उक्त जीवोके दो दो उदयस्थानोंकी, अपेक्षा दस दस सत्त्वस्थान होते हैं। इस प्रकार कुल सत्त्वस्थान पचास हुए। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक आदि अन्य छेह अपर्याप्तकोंके पचास पचास
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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