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________________ जीवसमासोंमें भंगविचार २० सत्त्वस्थान जानने चाहिये । किन्तु सर्वत्र अपने अपने दो दो उदयस्थाने कहने चाहिये। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके २३, २५, २६, २९ और ३० ये ही पाच वन्धस्थान होते हैं। और एक एक वन्धस्थानमें २१, २४, २५ और २६ ये चार उदयस्थान होते हैं। अत पांचको चारसे गुणा करने पर २० हुए । तथा प्रत्येक उदयस्थानमें पाच पांच सत्त्वस्थान होते हैं अतः २० को ५ से गुणा करने पर १०० सत्त्वस्थान हुए। __वादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके भी पूर्वोक्त पाच वन्धस्थान होते हैं। और एक एक बन्धस्थानमें २१, २४, २५, २६ और २७ ये पांच पाच उदयस्थान होते हैं। अतः ५ को ५ से गुणा करने पर २५ हुए। इनमेसे अन्तिम पाच उदयस्थानोमे ७८ के विना चार धार मन्वस्थान होते है जिनके कुल भग २० हुए और शेष २० उदय स्थानी मे पांच पांच सत्त्वस्थान होते हैं जिनके कुल भंग सौ हुए। इस प्रकार यहां कुल भंग १२० हुए। दोइन्द्रिय पर्याप्तकके २३, २५, २६, २७ और ३० ये पाँच वन्धस्थान होते हैं और प्रत्येक वन्धस्थानमें २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ ये छह उदयस्थान होते हैं। इनमेसे २१ और २६ इन दो उदयस्थानीमें पांच पांच सत्त्वस्थान होते हैं। तथा शेष चार उदयस्थानोंमें ७८ के विना चार चार सत्त्वस्थान होते हैं। ये कुल मिला कर २६ सत्त्वस्थान हुए। इस प्रकार पांच वन्ध
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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