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________________ जीवसमासोमें भङ्गविचार २०७ लब्धिसे रहित होनेके कारण विक्रिया नहीं करते, अत. इनके वैक्रियनिमित्तक उदयविकल्प नहीं प्राप्त होते । तथा इनके भी पहलेके समान ९२,८८,८६,८० और ७८ प्रकृतिक पॉच सत्त्वस्थान होते हैं। सो २१ प्रकृतिक उदयस्थानके ८ भग और २६ प्रकृतिक उदयस्थानके २८८ भग इनमें प्रत्येक भगमें पूर्वोक्त पॉच पाँच सत्त्वस्थान होते हैं, क्यो कि ७८ प्रकृतियोंकी सत्तावाले जो अग्निकायिक और वायुकायिक जीव असझी पचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमे उत्पन्न होते हैं उनके २१ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए ७८ प्रकृतिक सत्त्वस्थानका पाया जाना सम्भव है। किन्तु इनके अतिरिक्त शेप उदयस्थान और उनके सव भगोमे ७८ के विना शेप चार चार सत्त्वस्थान ही होते हैं। अव गाथामें की गई सूचनाके अनुसार सज्ञी पचेन्द्रिय पर्यातक जीवस्थानके वन्धादि स्थान और उनके भग बतलाना शेप है अत आगे इन्हींका विचार करते है-नाम कम के २३, २५, २६, २८, २९, ३०, ३१ और १ ये आठ वन्धस्थान बतलाये हैं सो सज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के ये आठों बन्धस्थान और उनके १३९४५ भाग सम्भव हैं, क्योंकि इसके चारो गतिसम्बन्धी प्रकृ तियोका बन्ध सम्भव है इसलिये तो २३ आदि वन्धम्थान इसके कहे है । तीर्थकर नाम ओर आहारकचतुष्कका भी इसके बन्ध होता है, इसलिये ३१ प्रकृतिक बन्धस्थान इसके कहा और इसके दोनो श्रेणियाँ पाई जाती है, इसलिये १ प्रकृतिक बन्धस्थान भी इसके कहा। तथा उदयस्थानो की अपेक्षा विचार करने पर इसके २०, २४, ९ ओर ८ इन चार उदयस्थानोको छोड़कर शेष सव उदयस्थान इसके पाये जाते हैं। यह तत्त्वत. जीवस्थान १२ वेंगुण स्थान तक ही पाया जाता है और २०, ९ और ये तीन उदयस्थान केवली सम्बन्धी हैं अत. इसके नहीं बताये।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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