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________________ १५२ सप्ततिकाप्रकरण - होता है। इम उदयन्यानमें तीर्थकर प्रकृतिके मिला देने पर २१ प्रकृतिक उदयम्यान होता है। इसका भी एक भङ्ग है। यह उदयन्यान समुद्रातगत तीर्थकर केवलीके कार्मणकाययोगके नमय होता है। तथा पूर्वोक्त २० प्रकृनिक उदयस्थानम औदारिकशरीर, वह नंन्यानोमेंस कोई एक संन्धान, जोनारिक प्रांगोपांग, बत्रपभनाराच संहनन, उपघात और प्रत्यक इन छह प्रकृतियोंके मिला देने पर २६ प्रतिक उदयन्यान होता है। यह अतीर्थकर केवलोके औदारिक मिश्रकाययोगके समय होता है। इसके छह संन्यानॉकी अपेक्षा छह मन है, परन्तु वे सामान्य मनुप्रोके उदयाथानाम भी सम्भव है, अन. उनकी पृयक गणना नहीं की। इस उद्यस्थानमें नीर्थ कर प्रकृतिके मिला देने पर २७ प्रकृनिक उदयस्थान होता है । यह नार्थ करकेवलाने औहारिक मिटकाययोगले नमय होता है। किन्तु इस उन्यस्थानमें एक समचतुरस्त्र संस्थानका ही उदय होता है, अतः इसका एक ही मन है। तथा पूर्वोक्त २६ प्रकृतिक अयस्थानमें पराधान, उच्छास, प्रगत विहायोगति और अप्रशत विहायोगति इनमेंसे कोई एक नया सुम्बर और दुम्बर इनमें से कोई एक इन चार प्रकृतियाँक मिला देने पर.३० प्रकृतिक उड्यन्धान होता है। यह अतीर्थ कर मयोगिकवलीके औतारिक काययोगने लमय होता है। यहाँ छह मंन्धान, प्रशस्त और अशत विहायोगति तथा मुन्वर और दुत्वरकी अपना ६x२x२२४ भंग होते हैं, किन्तु वे सामान्य मनुष्योंके उद्यम्थानों में भी प्राप्त होते हैं, अत. इनकी पृषक गिननी नहीं की। इस उड्यस्थानमें तीर्थकर प्रकृतिक मिला देने पर ३१ प्रक निक उदयल्यान होना है। यह तीर्थ कर सोगिकवलीके औदारिक काययोगके समय होता है। तथा नीर्य कर केवली जब वाग्योगका निरोध करते हैं व उनके स्वरका उदय नहीं रहता, अतः पूर्वोक्त
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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