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________________ नामकर्मके उदयस्थान १५३ ३१ प्रकृतियोंमसे एक प्रकृतिके निकाल देने पर तीर्थ केवलीके ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है। तथा जब उच्छवासका निरोध करते हैं तब उच्छ वाम प्रकृतिका उदय नहीं रहता, अत उच्छवासके घटा देने पर २९ प्रकृतिक उन्यम्यान होता है। किन्तु अतीर्थकरकेवलोके तीर्थकर प्रकृतिका उदय नहीं होता, अत. पूर्वोक्त ३० और २९ प्रकृतिक उदयम्थानोमेसे तीर्थकर प्रकृतिके घटा देने पर अतीर्थ कर केवलीके वचनयोगका निरोध हाने पर २९ प्रकृतिक और उच्छासका निरोध होने पर २८ प्रकृतिक उदयभ्यान होता है। अतीर्थकर केवलीके इन दोनो उदयस्थानाम छह मस्थान और दो विहायोगति इनकी अपेक्षा १२, १२ भङ्ग प्राप्त होते है, किन्तु वे सामान्य मनुष्योके उदयस्थानोमें भी सभव है, अत उनकी अलगसे गिनती नहीं की। तथा नी प्रकृतिक उदयम्थानमे मनुष्यगति, पचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पयाप्नक, सुभग, आदय, यश कीर्ति और तीर्थकर इन नौ प्रकृतियोका उदय होता है। अत इनका समुदाय एक नी प्रकृतिक उदयस्थान कहलाता है। यह स्थान तीर्थकर केवलीके होता है, जो अयोगिकेवली गुणस्थानमें प्राप्न होता है। इस उद्यस्थानमसे तीर्थकर प्रकृतिके घटा देने पर पाठ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह भी अयोगिकेवली गुणस्थानमें अतीर्थकर केवलोके होता है । यहाँ २०, २१, २७, २९, ३०, ३१, ९ और ८ इन उदयस्थानीका एक-एक विशेप भड्ग प्राप्न होता है इसलिये ८ भङ्ग हुए। इनमेस २० प्रकृतिक और ८ प्रकृतिक इन दो उदयस्थानीके दो भग अतीथकर केवलीक होते है। तथा शेप छह भग तीर्थकर केवलीके होते हैं। इस प्रकार सब मनुष्योंके उदयस्थान सम्बन्धी कुल भग २६०२+३५+७+८-२६५२ होते है। देवोके २१, २५, २७, २८, २९ और ३० ये छह उदयस्थान
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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