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________________ नामकर्मके उदयस्थान सयतोके दुर्भग, दु स्वर और अयश'कीर्ति का उदय नहीं होता। अत यहाँ एक ही भंग होगा। तदनन्तर शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके पराघात और प्रशस्त विहायोगति इन दो प्रकृतियोंके मिला देने पर २७ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी एक ही भग है। तदनन्तर प्राणापान पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके उच्छासके मिलाने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका एक भग होता है। अथवा शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके पूर्वोक्त २७ प्रकृतिक उदयस्थानमें उद्योतके मिला देनेपर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका भी एक भंग है। इस प्रकार २८ प्रकृतिक उदयस्थानके कुल दो भङ्ग हुए। तदनन्तर भाषा पर्याग्निसे पर्याप्त हुए जीवके उच्छ्रास सहित २८ प्रकृतिक उदयग्थानमे सुम्वरके मिलाने पर २९ प्रकतिक उदयस्थान होता है। इसका एक भङ्ग है। अथवा, प्राणापान पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके स्वरके स्थानमे उद्योतके मिलाने पर २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका भी एक भग है। इस प्रकार २९ प्रकृतिक उदयस्थानके कुल दो भग हुए। तदनन्तर भापा पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके ग्वरसहित २९ प्रकृतिक उदयस्थानमें उद्योतके मिलाने पर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका एक भङ्ग है। इस प्रकार आहारक संयतोके कुल उदयस्थान ५ और उनके कुल भङ्ग १+१+२+२+१= ७ होते हैं।। केवली जीवोके २०, २१, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ८ और ९ ये दम उदयस्थान होते हैं। पूर्वोक्त १२ ध्रुवोदय प्रकृतियो में मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, स, बादर, पर्याप्तक, सुभग, श्रादेय और यशःकीर्ति इन आठ प्रकृतियोके मिला देनेपर २० प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका एक भङ्ग है। यह उदयस्थान समुद्धातगत अतीर्थकवलीके कार्मण काययोगके समय
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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