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________________ १५० 'सप्ततिकाप्रकरणः ॥ पर २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका पूर्ववत् एक ही भंग हुआ । इस प्रकार २९ प्रकृतिक उदयस्थानके कुल ९ भंग हुए। तथा सुस्वर सहित २९ प्रकृतिक उदयस्थानमे संयतोके उद्योतके मिलाने पर ३० प्रकृतिक उदस्थान होता है। इसका पूर्ववत् एक ही भंग हुआ। इस प्रकार वैक्रिय शरीरको करनेवाले मनुष्यों के कुल उदयस्थान पॉच और उनके कुल भंग ८+८+९+९+१=३५ ' होते है। आहारक संयतोके २५, २७, २८, २९ और ३० ये पॉच उदयस्थान होते है। पहले मनुष्यगतिके उदय योग्य २१ प्रकृतियाँ कह पाये हैं। उनमें आहारक शरीर, श्राहारक आंगोपांग, समचतुरस्रसंस्थान, उपघात और प्रत्येक इन पांच प्रकृतियोके मिलाने पर तथा मनुष्य गत्यानुपूर्वीके निकाल लेने पर २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ सब प्रशस्त प्रकृतियोका ही उदय होता है, क्योकि आहारक (१) गोम्मटसार कर्मकाण्डकी गाथा २६७ से ज्ञात होता है कि पाँचवें गुणस्थान तकके जीवों के ही उद्योत प्रकृतिका उदय होता है। तथा उसकी गाथा २८६ से यह भी ज्ञात होता है कि उद्योलका उदय तियंचगतिमें ही होता है। इसीसे कर्मकाण्डमें आहारक सयतोंके २५, २७, २८, और २६ प्रकृतिक चार, उदयस्थान वतलाये हैं। इनमें से २१ और २७ प्रकृतिक उदयस्थान तो सप्ततिका प्रकरणके अनुसार ही जानना चाहिये। अब रहे शेष २८ और • ये दो उदयस्थान सो इनमें से २८ प्रकृतिक उदयस्थान उच्छवास प्रकृतिके उदयसे और २६ प्रकृतिक उदयस्थान सुस्वर प्रकृतिके उदयसे होता है ऐसा यहाँ जानना चाहिये । अर्थात् २७ प्रकृतिक उदयस्थानमें उच्छ्वास प्रकृतिके मिलाने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है और इस २८ प्रकृतिक उदयस्थानमें सुस्वर प्रकृतिके मिलाने पर २९ प्रकृतिक उदस्थान होता है।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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