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________________ उदयस्थानोका काल १०५ प्रत्येक उदयस्थानमे किमी एक वेट और किसी एक युगलका उदय अवश्य होता है और वेद तथा युगलका एक मुहूर्तके भीतर अवश्य ही परिवर्तन होता है। पचमग्रहकी मूल टीकामे भी बतलाया है'यतो युग्मेन वेदेन वाऽवश्यमन्तर्मुहूर्तादारत परावर्तितव्यम् । 'अर्थात् चूंकि एक अन्तर्मुहूर्तके भीतर किमी एक युगलका और किसी एक वेदका अवश्य परिवर्तन होता है, अत चार आदि उदयस्थानोका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।' इससे निश्चित होता है कि इन चार प्रकृतिक आदि उदयस्थानोका और उनके भगोका जो उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त उपस्मेणतोमुहुत्त ।' - कसाय० चु० (वेदकाधिकार)। 'प्रतमुहुत्तिय उदया समयादारम भगा य-पचम सप्तति. गा० ३३ । धव. उदी. ५० प्रा० १०२२ । (१) पड्नण्डागम सत्प्ररूपणासूत्र १०७ की धवला टीकामे लिखा है कि जमे कपाय अन्तर्मुहूर्तमें बदल जाती है वैसे वेद अन्तर्मुहूर्तमें नहीं बदलता किन्तु वह जन्ममे लेकर मरण तक एक ही रहता है। यथा 'कपायवनान्तर्मुहूर्तस्थायिनो वेदा, आजन्मन श्रआमरणात्तदुदयस्य सत्त्वात्। प्रज्ञापना में जो पुरुषवेद आदिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त आदि और उत्कृष्ट काल साधिक सौ सागर पृथक्त्व आदि बतलाया है इससे भी यही शात होता है कि पर्याय भर वेद एक ही रहता है। ___ इस लिये अन्तर्मुहूर्तमें वेद अवश्य बदल जाता है इस नियमको छोड़कर एक प्रकृतिक उदयस्थान श्रादिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त प्राप्त करते ममय उसे अन्य प्रकारसे मो प्राप्त करना चाहिये । यथाउपशमश्रेणिपर चढ़ते समय या उतरते समय कोई एक जीव एक प्रकृतिक उदयस्थानको एक समय तक प्राप्त हुश्रा और दूसरे समयमें मर कर वह देव
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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