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________________ ६४ सप्ततिकाप्रकरण वेदक सम्यग्दृष्टि सम्यक्त्व प्रकृतिका भी उदय हो जाता है। यहाँ यह कथन सामान्यसे किया है, इसलिये सभी विकल्पोको न बताकर सूचना मात्र कर दी है, क्योकि ग्रन्थकर्त्ता इस विपयका आगे स्वयं विस्तार से वर्णन करेंगे। इनमें से प्रत्येक उदयस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । मोहनीय कर्मके उदयस्थानो की उक्त विशेषता श्रीका ज्ञापक कोष्ठक - [ १६ ] उदयस्थान | गुणस्थान + १ २ ४ ५ ૬ ७ ८ ९ १० वां वेद भाग व १०वां वा सवेद भाग ६ठा, ७वां, दव ६ठा, वी, व ६ठा, ७वां, वां ५व ४था, इरा २रा १ सा भग ૪ १२ ૨૪ در 39 ❤ 34 33 > जघन्य एक समय 59 "" 35 39 33 , 39 30 काल } उत्कृष्ट अन्तर्मु० " 29 ܝܕ " ܕ 99 35
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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