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________________ मोहनीयकर्मके सत्तास्थान अव मोहनीय के सत्तास्थानो का कथन करते हैं १३ ॥ श्रद्वेगसत्तगछच्चउतिगदुगएगाहिया भवे वीसा | तेरस बारिकारस इत्तो पंचाइ एक्कूणा ॥ १२ ॥ संतस्स पगड़ठाणाड़ ताणि मोहस्स हुंति पन्नरस | बंधोदयसंते पुण भंगविगप्पा वह जाण ॥ अर्थ — अट्ठाईम, सत्ताईम, छब्बीस, चौबीस, तेईस, वाईस, इक्कीस, तेरह, वारह, ग्यारह, पाँच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक इस प्रकार मोहनीय कर्मके पन्द्रह सत्त्व प्रकृतिस्थान है । इन बन्धस्थान, उदयस्थान और सत्त्वस्थानोकी अपेक्षा भगोके अनेक विकल्प होते हैं जिन्हें जानो । ६५ विशेपार्थं – मोहनीय कर्मके सत्त्व प्रकृतिस्थान पन्द्रह है । इनमे से अट्ठाईस प्रकृतिस्थानमे मोहनीयको सव प्रकृतियोका समुदाय विवक्षित है। यह स्थान मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर उपशान्तमोह गुणस्थान तक पाया जाता है। इस स्थानका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि छब्बीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव जब उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त करके अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता प्राप्त कर लेता है और अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर (१) 'अट्टगसत्तगच्छ गचउतिगदुग एकगाहिया वीसा । तेरस वारेधारस सते पचाइ जा एक ॥ पञ्चस० सप्तति० गा० ३५ । 'श्रत्थि श्रट्टावीसाए सत्तावीसाए छब्बीसाए चडवीसाए तेबीसाए बावीसाए एकवीसाए तेरसह बारसहं एक्कारसह पचण्ह चदुण्ह तिन्ह दोन्हं एकिस्मे च १५ । एदे श्रघेण ॥' - कसाय० चुण्णि० ( प्रकृति अधिकार ) । 'अयसत्तयछक्कय चदुति दुगेगा धिगाणि वीसाणि । तेरस बारेयार पणादि एगूणय सत्त ॥ - गो० कर्म० गा० ५०८ । ५
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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