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________________ मोहनीयकर्मके उदयस्थान कारने पश्चादानुपूर्वीके क्रमसे मोहनीयके उदयस्थान गिनाये हैं। जहाँ केवल चार सज्वलनोमें से किसी एक प्रकृतिका उदय रहता है वहाँ एक प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह उदयस्थान अपगतवेदके प्रथम समयसे लेकर सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थानके अन्तिम समय तक होता है। इसमें तीन वेटोंमें से किसी एक प्रकृतिके मिला देने पर दो प्रकृतिक उदयस्थान होता है। जो अनिवृत्ति वादर सम्परायके प्रथम समयसे लेकर सवेद भागके अन्तिम समय तक होता है। इसमें हास्य-रति युगल या अरति शोक युगल इनमें से किसी एक युगलके मिला देने पर चार प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ तीन प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होता, क्योकि दो प्रकृतिक उदयस्थानमे हास्य-रति युगल या अरति-शोक युगल इनमें से किसी एक युगलके मिलाने पर चार प्रकृतिक उदयस्थान ही प्राप्त होता है। इसमें भय प्रकृतिके मिला देने पर पाँच प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसमे जुगुप्सा प्रकृतिके मिला देने पर छ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । ये तीनो उदयस्थान छठे सातवे और आठवे गुणस्थानमें होते है। इसमें प्रत्याख्यानावरण कपाय की किसी एक प्रकृतिके मिला देने पर सात प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह उदयस्थान पाँचवे गुणस्थानमे हाता है। इसमें अप्रत्याख्यानावरण कपायकी किसी एक प्रकृतिके मिला देने पर आठ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह उदयस्थान चौथे व तीसरे गुणस्थानमें होता है । इसमे अनंतानुवन्धी कषायकी किसी एक प्रकृतिके मिला देने पर नौ प्रकृतिक उदयस्थान होता है जो दूसरे गुणस्थानमें होता है। इसमे मिथ्यात्वके मिला देने पर दस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह उदयस्थान मिथ्यादृष्टि गुणस्थान मे होता है। इतना विशेष जानना चाहिये कि तीसरे गुणस्थानमे मिश्र प्रकृतिका उद्य अवश्य हो जाता है और चौथे से सातवें वक
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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