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________________ १८० आचार्यत्री ने उन्हे कडा उलाहना दिया, उन्होने बड़ी भारी विनम्रता का परिचय दिया । यही कारण था कि उनके विनय ने आचार्य श्री को पिघला दिया। मध्याह्न मे आज भगवत-गोष्ठी का कार्यक्रम रखा गया था। आचार्य श्री सभा-रथल पर ऊचे प्रासन पर प्रामीन थे । वह्नो द्वारा अणुव्रत प्रार्थना प्रारभ कर दी गई थी। इतने में कुछ नवयुवक एक अगुवती वारे में एक अभियोग पत्र लेकर आये और आचार्यश्री से प्रार्थना की कि उनके अभियोगो की निष्पक्ष जाच होनी चाहिए। आचार्यश्री ने उनके मा ने ही को याद किया और दोनो पक्षो की बातों को शान्ति "र्वक गुना। फिर दूसरे अगव्रती ने अपने बारे में व्याप्त भ्रान्तियो वा निराकरण किया । मचमुच भ्रान्तिया भी किस तरह अपना म्यान बना लेती है उसका यह एक उदाहरण था। तत्पश्चात् दो अगन्नती वहनो ने प्राचार्यश्री के सामने क्षमा याचना की । उनका आपस मे भाभी-ननद का सम्बन्ध था। पर कुछ वातो को लेकर वह सम्बन्ध कटु हो चला था । आचार्यश्री ने दोनो को ही उपालम्भ दिया। कहने लगे-"प्रगतियो को अपने मन में डम रखना शोभा नहीं देता। दोनो ने ही अपनी-अपनी स्थिति प्राचार्यत्री के मामने रखी। व्यवहार की बाधाएँ मूक्ष्म होती हुई भी गिनना दुगव कर देती है और अगुवती इन छोटी-छोटी बातो की भी कितनी सरलता से पालोचना करते है। इस दृष्टि से उनका यह मग त प्रेरक हो सकता है । ___भाभी ने ननद की शिकायत करते हुए कहा--प्राचार्यजी । मेरा अपनी आत्मा पर अधिकार है इसलिए मैं अपनी ननद से सादर निवेदन करती हूँ कि ये मेरे प्रागन पधारे। पर दूसरो की मैं किस तरह कह सकती है। दूसरे कोई कहे या नहीं मैं उसका क्या कर सकती है ? पर अपनी ओर से मै शुद्ध हृदय से कह सकती हूं कि मेरा घर इनका ही
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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