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________________ १८१ घर है चाहे जब ये ना सकती है । मैने अनेक बार इनको निमत्रण भी दिया था पर इन्होने स्वीकार नही किया इसमें मेरा क्या दोष है। ? ननद ने कहा- मैं पहले एक बार वहा गई थी तो इन्होंने गेरा सम्मान नही किया तब मैं फिर से इनके घर जाने की इच्छा कैसे कर सकती भाभी - - वह बहुत पहले की बात है । मैं मानती हू वह मेरी गलती हुई थी। पर उसके बाद तो अनेक वार निमत्रण भेजा था । ये भी तो व्रती ह इन्हें भी तो अपने मन मे विगत की बातो का इस नहीं उतना चाहिए । प्राचार्यश्री ने कहा- तुम अगुव्रती हो यत तुम्हे छोटी-छोटी बातों को बाधकर नही रखना चाहिए । ननद - अगर ये मेरा सम्मान करेगी तो मुझे वहा जाने मे क्या कठिनाई है ? वह तो मेरे पूज्य पिताजी तथा भाईजी का ही तो घर है । झट से स्थिति में परिवर्तन हो गया और भाभी ने ननद के पंगे मे पडकर अतीत में हुए श्रमद् व्यवहार की क्षमा मागी । ननद ने भी बडे प्रेम से अपने श्रमद् व्यवहार की उनसे क्षमा मागी । कुछ लोग सोच सकते है कि व्रती भी कितनी छोटी-छोटी बातों में उल जाते हैं पर इसमे सोचने जैसी क्या बात है ? उलझता तो सारा जगत् ही है जो उलझ कर भी सुलभने वा प्रयत्न करते है क्या यह साधना के पथ पर आगे बढने का संकेत नही हे ? आचार्यश्री ने अपने उपमहारात्मक प्रवचन में प्रव्रतियों को शिक्षा देते हुए कहा - व्रती का जीवन जनसाधारण के जीवन से कुछ ॐचा होना चाहिए। वे ही बाते जो दूसरे लोग करते हे प्रती भी करने
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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