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________________ २३-३-६० प्रातःकालीन प्रवचन के समय अनुशासन पर बोलते हुए आचार्यश्री' ने कहा-सघ का अर्थ है कुछ व्यक्तियो का एक समूह । वह उसी भवस्था मे सुरक्षित रह सकता है जबकि सभी सदस्य अनुशासन का पालन करते हो । इन दो वर्षों में मैं सघ से काफी दूर रहा । इस बीच मे अनुशासन हीनता को लेकर कुछ ऐसी अप्रिय बातें हुई जो नहीं होनी चाहिए, थी। पर वे हुई इसका मुझे बडा दुख है । इसीलिए इस बार इस सम्बन्ध को लेकर मैंने एक कदम उठाया था । मैं मानता हूँ मनुष्य से गलती हो सकती है । पर उस अवस्था मे जबकि गलतियो की संख्या बढ़ जाती है उनके प्रतिकार को भी सशक्त बनाना आवश्यक हो जाता है । कुछ लोगों ने मेरी इस पद्धति को शाश्वत नीति ही मान लिया है । उनका कहना है अब कोई साधु गलती करेगा तो आचार्यश्री उसे परिषद् में फटकार बताएगे । पर मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। मैं न तो दोष को छिपाने के पक्ष में है और न ही उसे जन साधारण के समक्ष प्रकट करने के पक्ष में है। जिस स्थिति में मुझे जैसा उचित लगता है मैं वैसा ही करता है। इस बार मैंने ऐसा प्रयोग किया आज भी एक साधु को आचार्यश्री ने भरी परिषद् में अनुशासनहीनता के आचरण के लिए खडा किया तथा उनको कडा पालम्भ' दिया । सचमुच वह दृश्य हृदय को दहला देने वाला था। कुछ लोग तो उस समय आचार्यश्री की आकृति देखकर कापने लगे। मुनिश्री ने भी उस समय बडे भारी धैर्य का परिचय दिया। उस स्थिति में भी जबकि
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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