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________________ [६] यहाँ पर में इतना और भी बतला देना चाहता है कि 'लिपिसंस्थानसंग्रह (अक्षराभ्यास ) नामक क्रिया के बाद भी एक क्रिया और बढ़ाई गई है और उसका नाम है 'पुस्तकप्रदप यह किया भी भादिपुराण में नहीं है और न तेती क्रियाशों की सूची में ही इसका नाम है । लिपिसंस्थान क्रिया का विधान करते हुए, 'मौसीबंधनतः पश्चाच्छास्त्रारंभी विधीयते' इस वाक्य के द्वारा, यपि, यह कहा गया था कि शासाध्ययन का प्रारम्म मानीवन्धन (उपनयन क्रिया ) के पश्चात् होता है परन्तु यहाँ । पुस्तकमहण' क्रिया को बढ़ा कर उसके द्वारा उपनयन संस्कार से पहल ही शक के पढने का विधान कर दिया है और इस बात का कुछ भी ध्यान नहीं रस्सा कि पूर्व कथन के साथ इसका विरोध माना है । यथा: उपाध्यायेन वे शिप्पं पुस्तक दीयते ना। शिष्योऽपि य एठच्याशं गान्दीपउनपूर्वकम् ॥१॥ (ज) मारकाजी ने लिपि-संस्थान-समाह' नामक क्रिया को देते हुए उसका मुहूर्त भी दिया है, जबकि दूसरी क्रियाओं में से गाधान, उपनयन (यज्ञोपवीत) और विवाहसंस्कार जैगी बड़ी क्रियायों तक का भापने कोई मुहूर्त नहीं दिया। नहीं मालूम इस क्रिया के साथ में मुहूर्त देने की आपको क्या सूझी और पापका यह कैसा रचना-कम है जिसका कोई एक तरीका, नियम अथवा ढंग नहीं !! अस्तु, इस मुहूर्त के दो पद्य इस प्रकार हैं:मृशादिपंचस्वपिसे मिपुमूने, इस्तादिकेच फियत नित्य]ऽश्विनी इस पद्य में जो पाठ मेद्र प्रैफिटी में दिया गया है वही मूलका शुद्ध पाठ है, सोनीजी की अनुवाद-पुस्तक में यह पलत रूप से दिया हुआ है। पयकाभनुवाद भी कुछ गलत हुआ है.। कमसे कम चित्रा' के बाद 'स्वाती'का और' पूर्वापाड 'से पहले. 'पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का नाम और दिया जाना चाहिये था। .
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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