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________________ [ 8] ॐ ही पार्णमालावधनं करोमि स्वाहा। -प्रसारित्रिषांचार! আঁখী আগষ্টুঃ ক্ষাগৰ থালি গালিঙ্গাৱা। ..-सोमसेनत्रिवधार।, इससे बक्षसूरित्रिवर्णाचार के मंत्रों का मांशिक विरोध पाया जाता है और उस यहाँ बदलकर रखा गया है, ऐसा जान पड़ता है । इसी तरह पर और मी कितने ही मंत्रों का प्रसूरि-त्रिवर्णाचार के साथ विरोध है और यह ऐसे मंत्रों के महत्व अषया उनकी समीचीनता को और भी कम किये देता है। (छ) मारकी ने 'अन्नप्राशन के बाद और 'न्युष्टि क्रिया से पहले 'गमन' नाम की भी एक क्रिया का विधान किया है, निसके द्वारा बालक को पैर रखना सिखलाया जाता है । यथा: अथास्य नवम मासे गमन कारयेरिया । गमनाधितन सुवार शुभयोगके ॥१४॥ यह क्रिया भी शादिपुराण में नहीं है-पादिपुराण की दृष्टि से यह मिथ्या क्रिया है और इसलिये इसका कथन भी भगवग्जिनसेन के विरुद्ध है। साथ ही, पूर्वापर-विरोध को भी लिये हुए है, क्योंकि महारकजी की तीस क्रियाओं में गी इसका नाम नहीं है। नहीं मालूम भट्टारकजी को बारबार अपने कथन के गी विरुद्ध कथन करने की यह क्या धुन समाई योनिब आप यह बतला चुके कि गर्भाधानादिक क्रियाएँ तेतीस है और उनके नाम भी दे चुके, तब उसके विरुद्ध बीच बीच में दूसरी क्रियाओं का भी विधान करत जाना और इसतरह पर सल्या प्रादि के भी विरोध को उपस्थित करना चाचित्तता, असमीक्ष्यचारिता अथवा पापसपन नहीं वो और क्या है । इस तरह की प्रवृत्ति निःसन्देह भापकी प्रन्यरचना-सम्बन्धी अयोग्यता को अच्छी तरह से ख्यापित करती है।
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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