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________________ [५] गर्माधानादयो भन्यानिविशक्रिया मता। वदयेऽधुना पुराणे तु या प्रांता गणिभिः पुरा nail इस वाक्य के शरा यह प्रतिज्ञा की गई है कि प्राचीन आचार्य महोदय ( जिनसन )ने पुराण ( आदिपुराण) में जिन गांधानाटिक ३३ क्रियाओं का कथन किया है उन्हीं का मैं अब कायन करता हूँ। यहाँ बहुवचनान्त 'गणिभिः' पदका प्रयोग नहीं है जो पहले प्रतिज्ञा वाक्य में जिनसनाचार्य के लिये उनके सम्मानार्थ किया गया है और उसके साथ में 'पुराणे'*पद का एकवचनान्त प्रयोग उनके उक्त पुराण ग्रन्थ को सूचित करता है। और इस तरह पर इस विशेष प्रतिमा बाक्य के द्वारा यह घोषणा की गई है कि इस प्रय में गर्भाधानादिक क्रियाओं का अयन जिनसनाचार्य के प्रादिपुराणानुसार किया जाता है । साथ ही, कुछ पच मी आदिपुराण से इस पथ के मनन्तर उद्धृन पि गये हैं, ' युष्टि ' नामक क्रिया को पादिपुराण के ही दोनों पषों ('ततोऽस्य हायने' प्रादि) में दिया है और प्रतवर्ष 'तथा ' प्रतापतरण ' नामक क्रियाओं के मी कितने ही पथ ('वतचर्यामहं वक्ष्ये' आदि) श्रादिपुराण से ज्यों के त्यों उठाकर रखे गये हैं । परंतु यह सब कुछ होते हुए भी इन क्रियाओं का अधिकांश कथन मादिपुराण अथवा भगवजिनसेनाचार्य के वचनों के विरुद्ध किया गया है, जिसका कुछ खुलासा इस प्रकार है: ६० पन्नालालजी सोनी ने 'पुराणे' पद का ओ बहुवचनान्त अर्थ "शास्त्रों में" ऐसा किया है वह ीक नहीं है। इसी तरह 'गशिभिः 'पद के पडवधनान्स प्रयोग का प्राशय मी भाप ठीक नहीं समझसके और आपने उसकाअर्थ "मपियों ने " दे दिया है।
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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