SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १] (क) भगवजिनसेन ने गर्भाधानादिक क्रियाओं की संख्या ५३ दी है और साथ ही निम्न पच द्वारा यह प्रतिपादन किया है कि गर्माधान से लेकर निर्वाण तक की ये ५३ क्रियाएँ परमागम में 'गन्षिय क्रिया' मानी गई है प्रयपंचाशदता हिमता गर्मान्धयक्रियाः । , गर्भाधानादिनिषिपंयन्ता परमानमे । पस्तु बिनसन के बचनानुसार कथन करने की प्रतिज्ञा से बंधे हुए भट्टारकनी उक्त क्रियाओं की संख्या ३३ पताते हैं और उन्होंने उन ३३ केनो नाम दिये हैं वे सब भी ये ही नहीं है जो प्रादिपुराण की ५३ क्रियाओं में पाये जाते हैं । यथा: माधानं प्रीतिः सुप्रीति तिमोदः प्रियोदयः । नामकर्म पहियोग शिपया प्राशन तथा ॥४॥ म्युटिव केशधापन लिपिसंस्थानसंग्रहः । अपनीतिर्वतचर्या तावतरखं तथा ॥५॥ विवाहो वर्णमामय कुलचा गृहीशिता । प्रशान्तिश्व गृहत्यागो दक्षिाय जिनकपमा ॥६॥ सूतफल व संस्कारो निर्वाण पिण्डदामकम् । बाई व सूतकतं मायश्चित्तं तथैव ॥७॥ तीर्थयाति कविता बानियलण्यया किया। भयाशिव धर्मस्य देशनाण्या विशेषत: इनमें से पहले तीन पथ तो प्रादिपुराण के पथ हैं और उनमें गर्भाधान को आदि लेकर २९ क्रियाओं के नाम दिये है, बाकी के दो पष भरकनी की प्राथा अपनी रचना बान पड़ते हैं और उनमें र क्रियाओं के नाम देकर तेतीस क्रियाओं की पूर्ति की गई है। और यहाँ से प्रकृत विषय के विरोध मला उस का भारमहमा है। इस
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy