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________________ अन्य-परीक्षा। ........पुण्यतिथौ सर्वारिष्टविनाशनार्थ शांतिकपौष्टिकादि सकलकर्मसिद्धिसाधनयंत्र-मंत्र-तंत्र-विद्याप्रभावकसिद्धिसाधकंसंसिद्धिनिमित्तं कायिकवाचिकमानसिकचतुर्विधपापक्षयार्थं '. देवब्राह्मणसन्निधौ देहशुयर्थ सर्वपापक्षयार्थ अमुकतीर्थ स्नानविधिना स्नानमहं करिष्ये ॥" : 'सह सब कथन जैनमतके बिलकुल विरुद्ध है। जैनधर्ममें न नदि- . योंको 'धर्मतीर्थ' माना है और न 'तीर्थदेवता। जैनसिद्धान्तके अनुसार . : नदियोंमें स्नान करने या नदियोंका ध्यानादिक करने मात्रसे पापोंका . .. नाश नहीं हो सकता । पापोंका नाश करनके लिए वहाँ सामायिक, प्रतिक्रमण, ध्यान और तपश्चरणादिक कुछ दूसरे ही उपायोंका वर्णन है। वास्तवमें, ये सब बातें हिन्दूधर्मकी हैं । नदियोंमें ऐसी अद्भुत 'शक्तिकी कल्पना उन्हींके यहाँ की गई है । और इसीलिए हरसाल लाखों हिन्दू भाई दूर दूरसे अपनाबहुतसा द्रव्य खर्च करके हरिद्वारादि तीर्थोपर स्नानके लिए जाते हैं। हिन्दुओंके 'आह्निक सूत्रावावलि' नामके ग्रंथमें हेमाद्रिकृत एक लम्बा चौडा स्नानका 'संकल्प' दिया है । इस संकल्पमें बड़ी तफ़सीलके साथ, गद्यपद्य द्वारा, उन पापोंको दिखलाया हैं जिनको गंगादिक नदियाँ दूर कर सकती हैं और जिनके दूर करनेकी स्नानके समय उनसे प्रार्थना की जाती है। शायद ही कोई पापका भेद ऐसा रहा हो जिसका नाम इस संकल्पमें न आया हो । पाठकोंके. . अवलोकनार्थ यहाँ उसका कुछ अंश उद्धृत किया जाता है:... . " रागद्वेषादिजनितं कामक्रोधेन यत्कृतम्। * हिंसानिद्रादिजं पापं भेददृष्ट्या च यन्मयां ॥ ... .१ अमावास्या तथा श्रावणकी पौर्णमातीको इसी पर्व में पुण्यतिथि: लिखा है। . और उनमें स्नानकी प्रेरणा की है। ... १०२
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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