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________________ ( ४८० ) नदोपब्बतसोभितं रमणीयभूमिप्पदेसभागं आरामय्यानोपवनतडागपोक्खरणी सम्पन्नं नदोपब्बतरामणेय्यक" आदि। उसके बाद उपर्युक्त सात भागों में ग्रन्थ की विषय-सूची तथा फिर नागसेन और मिलिन्द के पूर्व-जन्म की कथा है। यह एक बड़े आश्चर्य की बात है कि भदन्त नागसेन ने अपने और अपने प्रतिवादी मिलिन्द के पूर्वजन्म (पुब्बयोग, पुब्बकम्म) के वर्णन में तो इतनी तत्परता दिखाई है, फिर भी अपने वर्तमान जन्म और कर्म के विषय में अधिक जानने का हमें अवकाश नहीं दिया । सम्भवतः जिसे हम इतना ठोस समझते है वह उनके लिये इतना आवश्यक नहीं था और जो कुछ हमें अपने विषय में वह बताना आवश्यक समझते थे उसे उन्होंने वहाँ बता भी दिया है। स्थविर नागसेन का जन्म मध्य देश की पूर्वी सीमा पर स्थित, हिमालय पर्वत के समीपवर्ती कजंगला नामक प्रसिद्ध कस्बे में हुआ था। उनके पिता का नाम सोगुत्तर था, जो एक ब्राह्मग थे । तोनों वेदों, इतिहासों और लोकायत शास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर नागसेन ने स्थविर रोहण से बुद्ध-शासन सम्बन्धो शिक्षा प्राप्त को एवं वौद्ध धर्म में प्रवेश किया। तदनन्तर वे वत्तनिय सेनासन के स्थविर अस्मगुत्त (अश्वगुप्त) के पास गये और उनसे शिक्षा प्राप्त को । यहीं उनको सोतापन्न (सोत आपन्न) फल की प्राप्ति हुई । तदनन्तर उन्हें पाटलिपुत्र भज दिया गया, जहाँ उन्होंने स्थविर धर्मरक्षित से बौद्ध धर्म का विशेष अध्ययन किया। यही उन्हें अर्हत्त्व फल की प्राप्ति हुई। इसके बाद वे सागल (सियालकोट) के संखेय्य परिवेण में गये, जहाँ राजा मिलिन्द से उनको भेट हुई । मिलिन्द की शिक्षा का वर्णन करते हुए उसे 'श्रुति, स्मृति, संख्यायोग (सांख्य योग), नीति, वैशेपिक (विसेसिका) आदि १९ शास्त्रों का मननशील विद्यार्थी बतलाया गया है । वह पूरा तर्कवादी, वितंडावादी और वाद-विवाद में अजेय था, यह भी दिखाया गया है। मिलिन्द को दार्शनिक वाद-विवाद से बड़ा प्रेम था और उसने 'लोकायत' सम्प्रदाय आदि के अनुयायी सभी विचारकों को परास्त कर दिया था। उसने बुद्धकालोन ६ प्रधान आचार्यों की गद्दियों पर प्रतिष्ठित उनके ही समान नाम धारण करने वाले छह प्रधान आचार्यो, यथा पूरणकस्सप, मक्खलि गोसाल, निगण्ठ नाटपुत्त, सञ्जय वेलटिपुन, अजित केस कम्बली और पकुध-कच्चायन कं नान भी अपने मन्त्रियों से सुन रक्खे थे, और प्रथम दो से वह मिला भी
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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