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________________ ( ४७९ ) जाना स्वीकार नहीं किया जा सकता। चूंकि यह मत डा० गायगर जैसे विद्वान की ओर से आया है, इसलिए इसका उल्लेख यहाँ कर दिया गया है । अन्यथा वह इस योग्य भी नहीं है। 'मिलिन्द पन्ह' निश्चयतः अपने मौलिक पालि रूप में उत्तर-पश्चिमी भारत की प्रथम शताब्दी ईसवी पूर्व की रचना है । सम्भव है उसमें बाद में भी परिवर्द्धन हुए हों। किन्तु उसका मौलिक रूप आज का सा सात परिच्छेदों वाला ही रहा हो, इसके लिए भी कम अवकाश नहीं है, क्योंकि जैसाडा० टी० डब्ल्यू० रायस डेविड्स ने सुझाव रक्खा है संभवत: चीनी अनुवादक ने ही अपने अनुवाद में अन्तिम चार अध्यायों को छोड़ दिया हो।' यद्यपि विटरनित्ज़ ने उनके इस मत को स्वीकार नहीं किया है । हमें चौथी शताब्दी ईसवी में (जिससे पहले चीनी अनुवाद नहीं हुआ था बुद्धघोष के इस ग्रन्थ के प्रति आदर और श्रद्धा-भाव को देख कर सत्य की इसी ओर प्रवणता दिखाई पड़ती है । जैसा ऊपर कहा जा चुका है, 'मिलिन्द पह' को विषय-वस्तु सात भागों या अध्यायों में विभक्त है (१) बाहिर कथा, (२) लक्खण पञ्हो, (३) विमतिच्छेदन पञ्हो, (४) मेण्डक पञ्हो, (५) अनुमान पन्हं, (६) धुतंग कथा और (७) ओपम्मकथा पञ्ह । 'बाहिर कथा', 'मिलिन्द पञ्ह' की भूमिका है। सर्व प्रथम लेखक ने नागमेन की इस विचित्र कथा (चित्रा नागसेनकथा) को जो, अभिधर्म, विनय और सुत्तों पर समाश्रित है, और जिसमें विचित्र उपमाएँ और युक्तियाँ प्रकाशित की गई हैं, सावधान हो कर , ज्ञानपूर्वक, बुद्ध-शासन सम्बन्धी सन्देहों के निवारणार्थ, सुनने को आह्वान किया है-- अभिधम्मविनयोगाल्हा सुत्तजालसमत्थिता। नागसेनकथा चित्रा ओपम्मेहि नयेहि च॥ तत्थ जाण पणिधाय हासयित्वान मानसं । सणाथ निपुणे पन्हे कङखाठानविदालनेति ॥ उसके बाद ग्रीक राजा मिलिन्द (मेनान्डर) की राजधानी सागल का रमणीय, काव्यमय वर्णन है । “अथ यं अस्थि योनकानं नानापुटभदनं सागलं नाम नगरं १. ऐन्साइक्लोपेडिया ऑव रिलिनजन एंड एथिक्स, जिल्द आठवीं, पृष्ठ ३६२, २. हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १७७ पद-संकेत १
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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