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________________ ( ४८१ ) १ 1 था, किन्तु उसकी शान्ति उनसे नहीं हुई थी । अन्त में ग्रीक राजा को यह अभिमान होने लगा "तुच्छो बत भो जम्बुदीपो पलापो वत भो जम्बुदीपो । नत्थि कोचिसमणो वा ब्राह्मणो वा यो मया सद्धिं सल्लपितुं सक्कोति कखं पटिविनोदेतुंति ।" " तुच्छ है भारतवर्ष ! प्रलाप मात्र है भारतवर्ष ! यहाँ कोई ऐसा श्रमण या ब्रह्म नहीं है जो मेरे साथ, मेरे सन्देहों के निवारणार्थ संलाप भी कर सके।" मिलिन्द के इन शब्दों में हम बुद्धिवादी ग्रीक ज्ञान की गौरवमय हुंकार देखते हैं । भारतीय राष्ट्र का गौरव भदन्त नागसेन के रूप में अपनी सारी संचित ज्ञानगरिमा को लिये हुए अन्त में उसे मिल गया । नागसेन के ज्ञान की प्रशंसा में कहा गया है कि उन्होंने अपनी अल्पावस्था में ही निघंटु आदि के सहित तीनों वेदों को पढ़ लिया था, और वे इतिहास, व्याकरण, लोकायत आदि शास्त्रों में पूर्ण निष्णात थे । उसके बाद प्रव्रजित हो कर उन्होंने अभिधम्म के सात प्रकरणों तथा अन्य तेपिटक बुद्ध वचनों को अपने गुरु रोहण से पढ़ा था। पहले उन्होंने धर्मरक्षित नामक भिक्षु के साथ पाटिलपुत्र में निवास किया। बाद में आयुपाल नामक भिक्षु के निमंत्रण पर वे हिमाचल प्रदेश के संखेय्य परिवेण नामक विहार में चले गये । वहीं राजा मिलिन्द उनसे मिलने के लिए गया । 'अथ खो मिलिन्दो राजा येनास्मा नागसेनो तेनोपसंगनि' (तदनन्तर राजा मिलिन्द जहाँ आयुष्मान् नागसेन थे, वहाँ गया । ) कुशल - प्रश्न पूछने और परिचय प्राप्त करने में ही दार्शनिक संलाप छिड़ गया । संवाद भी उस प्रश्न पर जो बुद्ध दर्शन की आधार भूमि है । अनात्म लक्षग ! राजा मिलिन्द नागसेन के पास जा कर बैठ जाता है और उनसे पूछता है- १. यूरोपीय विद्वानों ने पूरण कस्सप, मक्खलि गोसाल आदि के नाम देख कर ही यह समझ लिया है कि यहाँ 'मिलिन्द पञ्ह' के लेखक ने इन बुद्धकालीन आचार्यों का उल्लेख किया है । यह एक भ्रम है | देखिये मिलिन्द प्रश्न, ( हिन्दी अनुवाद) की बोधिनी में भिक्षु जगदीश काश्यप की इस विषय - सम्बन्धी टिप्पणी २. तीसु वेदेसु सनिघंटु केटुभेस साक्खरप्पभेदेसु इतिहासपञ्चमेसु पदको वैय्याकरणो लोकायत महापुरिस लक्खणेसु अनवयो अहोसि । पृष्ठ ११ ( बम्बई विश्वविद्यालय का संस्करण) ३१
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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