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________________ ( ४५७ ) (५) तिक-तिक-ट्ठान--परस्पर मिश्रित २२ त्रिकों को लेकर पूर्ववत् अध्ययन । (६) दुक-दुक-पट्ठान--परस्पर मिश्रित १०० द्विकों को लेकर पूर्ववत् अध्ययन । इस प्रकार संपूर्ण महाग्रन्थ चौबीस भागों में बटा हुआ है, जिनमें से प्रत्येक 'पट्ठान' कहलाता है । इसीलिए 'पट्टान' की अट्ठकथा में कहा गया हैचतुवीसति-समन्त-पट्ठान-समोधान-पट्ठान-महाप्पकरणं नामाति । अर्थात् पट्ठान महाप्रकरण में कुल मिलाकर २८ ‘पट्ठान' या प्रत्यय-स्थान है । ‘पलान' के दीर्घ आकार को देखते हए उसके विपय या शैली का लघु से लघु संक्षेप देना भी कितना कठिन है, यह आसानी से समझा जा सकता है। किन्तु जैमा पहले कहा जा चुका है, उसकी भूमिका (पच्चय-निहेस) में उन २८ प्रत्ययों का उल्लेख और संक्षिप्त विवेचन है, जिसके आधार पर संपूर्ण ग्रन्थ में प्रतीत्य समुत्पाद को समझाया गया है। प्रत्यय-दर्शन का विवेचन पट्ठान की एक मुख्य विशेषता है । जैसा श्रीमती रायस डेविड्स ने कहा है, संपूर्ण अभिधम्म दर्शन सम्बन्धी ज्ञान के लिये वह एक महत्व पूर्ण रचनात्मक दान है। हमारा उद्देश्य यहाँ इन २४ प्रत्ययों का संक्षिप्त विवरण देना ही है। इनके नाम इस प्रकार है-- १. हेतु-प्रत्यय ८. निःश्रय-प्रत्यय २. आलम्बन-प्रत्यय ९. उपनिःश्रय-प्रत्यय ३. अधिपति-प्रत्यय १०. पूर्व जात-प्रत्यय ४. अनन्तर-प्रत्यय ११. पश्चात्जात-प्रत्यय ५. ममनन्तर-प्रत्यय १२. आसेवन-प्रत्यय ६. महात-प्रत्यय १३. कर्म-प्रत्यय ७. अन्योन्य-प्रत्यय १४. विपाक-प्रत्यय - - - - - -- - - - १. देखिये तिक-पट्ठान, प्रथम भाग (श्रीमती रायस डेविड्स द्वारा सम्पादित, पालि टैक्स्ट सोसायटी से प्रकाशित, लन्दन १९२१-२३) पृष्ठ ५ (भूमिका) एवं तिक-पट्ठान, द्वितीय भाग को सम्पादकीय टिप्पणी।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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