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________________ १५. आहार- प्रत्यय १६. इन्द्रिय- प्रत्यय १७. ध्यान- प्रत्यय १८. मार्ग - प्रत्यय १९. सम्प्रयुक्त-प्रत्यय ( ४५८ ) २०. विप्रयुक्त-प्रत्यय २१. अस्ति-प्रत्यय २२. नास्ति प्रत्यय २३. विगत - प्रत्यय २४. अविगत - प्रत्यय 9 प्रत्येक प्रत्यय का क्या अर्थ है और किस प्रकार उसका आश्रय लेकर किसी एक धम्म या धम्मों की उत्पत्ति और निरोध किसी दूसरे धम्म या धम्मों की उत्पत्ति और निरोध पर आधारित है, इसका भी कुछ दिग्दर्शन कराना यहाँ आवश्यक होगा । १. हेतु प्रत्यय ( हेतु पच्चयो ) -- हेतु का अर्थ हैं मूल कारण या आधार । अभिधम्म-दर्शन में लोभ, द्वेष, मोह एवं उनके विपक्षी अलोभ, अद्वेष और अमोह को मूल कारण या हेतु कहा गया है । इनमें से पहले तीन कर्म विपाक की दृष्टि में अकुशल हैं और बाद के तीन कुशल है । और कहीं कहीं (जैसे कि अर्हतु के संबंध में ) अव्याकृत अर्थात् अनिरुक्त ( नितान्त स्वाभाविक या कर्म विपाक उत्पन्न करने में निष्क्रिय) भी । जितनी भी कुशल या अकुशल अवस्थाएँ मानसिक या भौतिक जगत् में हो सकती है, उनके मूल आधार वा हेतु क्रमशः उपर्युक्त कुगल या अकुशल धम्म ही हैं । इन मूल आधारों या हेतुओं की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर ही अनिवार्यतः सव कुशल और अकुशल धम्मों की उपस्थिति या अनुपस्थिति निर्भर है । पठान की भाषा में, "हेतुओं मे संयुक्त धम्म और इन्हीं से उत्पन्न होने वाली भौतिक जगत् की सारी अवस्थाएं, हेतुओं पर हेतु प्रत्यय के रूप में अवलम्बित हैं ।" उत्पन्न होनेवाली वस्तु ( पच्चयुप्पन्न -- प्रत्ययोत्पन्न ) तो यहाँ धम्म और भौतिक जगत् की अवस्थाएं है । जिनमे १. इन चौबीस प्रत्ययों में अनेक एक दूसरे में सम्मिलित है । अभिधम्मत्य संगह में इनको चार मुख्य भागों में विभक्त कर दिया गया है, यथा आलम्बन, उपनिःश्रय, कर्म और अस्ति । आरम्भणूपनिस्सय कम्मत्थिपञ्चयेसु च सब्बेपि पच्चया समोधानं गच्छन्ति । पृष्ठ १५१ ( धम्मानन्द कोसम्बी का संस्करण, नवनीत टीका सहित )
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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