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________________ ( ३३८ ) रूप में सुरक्षित रखने का जो आग्रह दिखलाया है उसके आधार पर यह माना जा सकता है कि लंका में महिन्द आदि भिक्षुओं के द्वारा ले जाये जाने के बाद से अभिधम्म वहाँ उसी विशुद्धतम स्वरूप में सुरक्षित बना रहा जिसमें वे उसे वहाँ ले गये थे। अब प्रश्न यही रह जाता है कि क्या महिन्द आदि भिक्षु जिस अभिधम्म को तृतीय शताब्दी ईसवी पूर्व लंका में ले गये थे क्या वह वही बुद्ध-वचन था जिसका उपदेश स्वयं शास्ता ने मध्य-मंडल में दिया था ? कम से कम स्थविरवादी बौद्ध परम्परा तो उसे इसी रूप में उस समय से मानती आई है और भिक्ष-संघ ने भी उसे बड़े प्रयत्न से उसके मौलिक रूप में सुरक्षित रखना अपना कर्तव्य माना है। किन्तु दूसरे संप्रदायवालों (विशेषतः सर्वास्तिवादियों) ने उसके इस दावे को वैशाली की संगीति के समय से ही नहीं माना था, यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है। उपर्युक्त कथन से कम से कम एक बात निश्चित रूप से हमें मिल जाती है, और वह है अभिधम्म-पिटक के उस रूप के पणयन की, जिसमें वह अंतिम रूप से निश्चित और स्थिर हो गया था, निचली काल-सीमा। पाटलिपुत्र की संगीति २५३ ई० पू० में हुई। उसके समाप्त होने पर ही महिन्द आदि भिक्षु लंका को भेजे गये। अतः यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि लगभग २५० ई० पूल तक अभिधम्म-पिटक अपने उस रूप में, जिसमें वह आज उपलब्ध है, पूर्णतः स्थिर हो चुका था। बाद में मिलिन्दपन्ह (१०० ई० पू०) में तो अभिधम्म पिटक. के सातों ग्रन्थों का, उनकी पुरी वर्गीकरण-शैली के संक्षिप्त निर्देश के साथ, उल्लेख हुआ है। जिस आदर के साथ अभिधम्म-पिटक का उल्लेख यहाँ किया गया है. उसमे यह स्पष्ट है कि बुद्ध-वचनों के रूप में उसकी ख्याति बौद्ध परम्परा में उस समय तक दृढ़ प्रतिष्ठा पा चुकी थी। यदि कम से कम सौ-डेढ़ सौ वर्ष का काल भी इस परम्परा के निर्माण में लगा हो तो भी हम आसानी से अशोक-संगीति के समय तक पहुँच जाते हैं जब कि तेपिटक बुद्ध-वचनों का अंतिम रूप से संस्करण हुआ था। अतः अशोक-संगीति या तृतीय शताब्दी ईसवी पूर्व का मध्यांश अभिधम्म-पिटक के रचना-काल की निचली काल-सीमा है जिसे बहुत खींचतान कर प्रथम शताब्दी ईसवी पूर्व तक अर्थात् उसके सिंहल में लेखबद्ध होने अथवा मिलिन्दपञ्च में उसके उद्धृत होने तक के समय तक भी घटाकर लाया जा सकता है। अब हमें उसके रचनाकाल की उपरली काल-सीमा का निर्णय करना है। विनय-पिटक--चुल्लवग्ग के १. मिलिन्दपञ्ह, पृष्ठ १३-१४ (बम्बई विश्वविद्यालय का संस्करण)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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