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________________ ( ३३९ ) प्रथम संगीति के वर्णन में हमने देखा है कि वहाँ धम्म और विनय के ही संगायन की बात कही गई है। अभिधम्म के संगायन की कोई सूचना वहाँ नहीं मिलती। किन्तु अट्ठकथा (सुमंगलविलासिनी एवं समन्तपासादिका) के वर्णन में, जैसा हम पहले देख चुके हैं अभिधम्म-पिटक के सातों ग्रन्थों के भी संगायन किये जाने का उल्लेख है। चूंकि त्रिपिटक के साक्ष्य के सामने उसकी अट्ठकथा के साक्ष्य का कोई प्रामाण्य नहीं माना जा सकता, अतः समन्तपासादिका' का साक्ष्य यहाँ अपने आप प्रमाण की सीमा के बाहर हो जाता है । जैसा भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने कहा है “विनय और धर्म के साथ अभिधम्म का भी पारायण इनी (प्रथम) संगीति में हुआ, यह जो समन्तपासादिका का कहना है, यह तो स्पष्टरूप से गलत है।"१ किन्तु 'समन्तपासादिका' के साक्ष्य को स्पष्ट रूप से गलत मानते हुए भी उससे इतना निष्कर्ष तो हम निकाल ही सकते हैं कि अधिक से अधिक प्रथम संगीति के समय ही अभिधम्म-पिटक का विकास होना आरम्भ हो गया था। तभी हम वैशाली की संगीति के अवसर पर इस विषय संबंधी सर्वास्तिवादियों और स्थविरवादियों के विरोध और विवाद को समझ सकते हैं। यदि आज प्राप्त पालि विनय-पिटक का संकलन वैशाली की संगीति के अवसर पर ही हुआ हो तो उसमें जिस प्रकार अलौकिक ढंग से अभिधम्म को साक्षात् बुद्ध-वचन सिद्ध करने का प्रयास किया गया है, उसका ऐतिहासिक रहस्य भी आसानी से समझा जा सकता है । दूसरे संप्रदायवालों द्वारा अभिधम्म की प्रामाणिकता का निषेध कर देने पर ही उन्हें इस प्रकार के विधान की आवश्यकता पड़ी। प्रथम संगीति के पहले हम पारिभाषिक अर्थों में अभिधम्म-पिटक के वर्तमान होने की स्थापना किसी आधार पर नहीं कर सकते। उससे पहले सिर्फ 'मातिकाओं (मात्रिकाओं) का वर्णन मिलता है। सर्वास्तिवादियों के मतानुसार भी 'मात्रिकाओं (अभिधर्म)का संगायन प्रथम संगीति के अवसर पर आर्य महाकाश्यप ने किया था। कुछ भी हो, इन 'मातिकाओं के आधार पर ही अभिधम्म-पिटक का विकास हुआ है । अभिधम्मपिटक के सर्वप्रथम ग्रन्थ 'धम्मसंगणि' का प्रारंभ एक 'मातिका' से ही होता है । श्रीमती रायस डेविड्स ने इसी को अभिधम्म-पिटक का मूल स्रोत माना है। १. महावंश, पृष्ठ ११ (परिचय) २. ए बुद्धिस्ट मेन्युअल ऑव साइकोलोजीकल एथिक्स (धम्मसंगणि का अंग्रेजी अनुवाद) द्वितीय संस्करण, पृष्ठ ९, १०५-११३ (भूमिका)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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