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________________ थे। किन्तु उसके बाद इस दिशा में जो महत्वपूर्ण गवेषण-कार्य हुआ है, उससे अब हमें पथभ्रष्ट होने की आवश्यकता नहीं है । इस महत्वपूर्ण समस्या पर हम अभी भारतीय भाषाओं के विकास में पालि की पृष्ठभूमि को देखने के बाद आयेंगे। भारतीय भाषाओं के विकास में पालि का स्थान भारतीय भाषाओं का इतिहास तीन युगों या विकास-श्रेणियों में विभक्त किया गया है (१) प्राचीन भारतीय आर्य-भाषा युग (वैदिक युग.से ५०६ ईसवी पूर्व तक (२) मध्यकालीन भारतीय आर्य-भाषा युग (५.०० ईसवी पूर्व में १००० ईसवी तक (३) आधुनिक आर्य-भाषा युग (१००० ईसवी से अब तक) ! प्रथम युग की भाषा का नमूना हमें ऋग्वेद की भाषा में मिलता है। उसमें तत्कालीन अनेक बोलियों का सम्मिश्रण है। ऋग्वेद की भाषा का विकास अन्य वेदों. ब्राह्मण-ग्रन्थों और सूत्र-ग्रन्थों में हुआ है । मध्यकालीन भारतीय आर्य-भाषा युग में एक ओर वेद की भाषा की विविधता को नियमित किया गया, उसे एकरूपता प्रदान की गई, जिसके परिणाम स्वरूप एक राष्ट्रीय, अन्तर्घान्तीय साहित्यिक भाषा का 'संस्कृत' के नाम से विकास हुआ और दूसरी ओर उसी के समकालिक. ऋग्वेद की विविधतामयी भाषा अनेक प्रान्तीय बोलियों के रूप में विकास ग्रहण करती गई । जब भगवान् बुद्ध ने मगध-प्रान्त में भ्रमण करते हुए वहाँ की जनभाषा में उपदेश दिया तो यह वही ऋग्वेद की विविधतामयी भाषा के प्रान्तशः विकसित रूपों में से एक थी। तथागत के 'वाचनामग्ग' होने का गौरव मिलने के कारण इसका भी रूप बाद में राष्ट्रीय हो गया और इसी कारण अनेक बोलियों, प्रान्तीय भाषाओं और उपभाषाओं का संमिश्रण भी इसमें हो गया। इसे हम आज 'पालि' भाषा कहते हैं। इस प्रकार संस्कृत और पालि का विकास समकालिक है। मध्यकालीन भारतीय आर्य-भाषा युग में इस जन-भाषा के विकास के हम तीन स्तर देखते हैं (१) पालि और अशोक की धर्मलिपियों की भाषा (५०० १. डा० विमला चरण लाहा जैसे आधुनिक विद्वान् भी हम मोह से मुक्त नहीं हो पाये हैं। देखिये उनका हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ, ११ (भूमिका) जहां उन्होंने मागधी निरुक्ति को सिंहली भिक्षुओं की शुद्ध गढंत कहा है।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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