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________________ ( १० ) तिपिटक और उसका सम्पूर्ण उपजीवी साहित्य रक्खा हुआ है। किन्तु 'पालि' शब्द का इस अर्थ में प्रयोग स्वयं पालि-साहित्य में भी कभी नहीं किया गया है। जिस भाषा में तिपिटक लिखा गया है, उसके लिये वहाँ मागधो, मगध-भाषा, मागधा निरुक्ति, मागविक भाषा जैसे शब्दों का ही व्यवहार किया गया है, जिनका अर्थ होता है मगध-देश में बोले जाने वाली भाषा । इस प्रकार के प्रयोगों के कुछएक उदाहरग ही यहां पर्याप्त होंगे, यथा, मागधानं निरुत्तिया परिवत्तेहि (मागधो भाषा में रूपान्तरित करो)--महावंश, परिच्छेद ३७ ...... भातिस्तं मागवं सद्द लक्खमं (मागधो भाषा के व्याकरण का निरूपण करूँगा)मोग्गल्लान-व्याकरग का आदि श्लोक, आदि। सिंहली परम्परा के अनुसार मागवो ही वह 'मूल' भाषा है, जिसमें भगवान् बुद्ध ने उपदेश दिये थे और जिसमें ही उसका संग्रह 'तिपिटक' नाम से किया गया था। इसी अर्थ को व्यक्त करते हुए कच्चान-याकरण में कहा गया है “सा मागवी मूल भासा....सम्बुद्धा चापि भासरे" (मागधी ही वह मूल भाषा है जिसमें ..... सम्यक् सम्मुद्ध ने भी भाषण दिया )अकथाचार्य भगवान् बुद्धघोष की भी यही मान्यता थी सम्मामम् द्वेन वृत्त पकारो मागधको वोहारो" (सम्यक् सम्बुद्ध के द्वारा प्रयुक्त मागधी भाषा-त्रयोग)--सतन्तपासादिका । इस रूप में मागधी भाषा की प्रतिष्ठा स्थविरवादी बौद्ध साहित्य में इतनी अधिक है कि कहीं कहीं उसके गौरव के विषय में इतना अधिक अर्थवाद कर दिया गया है कि वह आधुनिक ऐतिहासिक बुद्धि को कुछ अवरता भी है। मागधी भाषा को यहाँ सम्पूर्ण प्राणियों की आदि भाषा ही मान लिया गया है। आचार्य बुद्वयोष ने 'विसुद्धिमग्ग' में कहा है "मागधिकाय सब्बसत्तानं मूलभासाय” (सम्पूर्ण प्रागियों को मूल भाषा मागधी का)। इसो प्रकार महावंश, परिच्छेद ३७ में कहा गया है "सब्बे मूलभासाय मागधाय निरुतिया" (सम्पूर्ग प्राणियों की मूल भाषा मागधी भाषा का) आदि। निश्चय ही सिंहली परम्परा अपनी इस मान्यता में बड़ी दढ है कि जिसे हम आज ‘पालि' कहते हैं. वह बुद्धकालीन भारत में बोले जाने वाली मगव को भाषा ही थी। कहाँ तक या किन अर्थों में यह परम्परा ठीक है, यह हमारे अध्ययन की सम्भवतः सब से अधिक महत्वपूर्ण समस्या है। पालि स्वाध्याय के प्रयम युग में उपर्युक्त सिंहली परम्परा सिंहली भिक्षुओं की एक मनगढ़त कल्पना मानो जातो थो। ओल्डनबर्ग ने इस मान्यता के प्रचार में काफी योग दिया था। अनेक प्रसिद्ध भारतीय विद्वान् भी उनके इस प्रवाह में बह गये
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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