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________________ ( २६० ) प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच एकान्त ध्यान करते हुए जो आनन्द प्राप्त होता है उससे अधिक आनन्द और कुछ नहीं है, ऐसा साक्ष्य देते हुए एक स्थविर साधक ने प्रभावशाली शब्दों में कहा है : जब आकाश में मेघों की दुन्दुभी बजती है और पक्षियों के मार्गा में चारों ओर धाराकुल बादल चक्कर लगाते हैं ; उस समय भिक्ष पहाड़ पर जाकर ध्यान करता है--इससे बड़ा आनन्द और कुछ नहीं है। जव कुसुमों से आच्छादित नदियों के. किनारे पर बैठ कर सुन्दर मन वाला भिक्षु ध्यान करता है--इससे बड़ा आनन्द और कुछ नहीं है। जब एकान्त वन में, अर्द्ध रात्रि में, बादल गड़गड़ा रहा है और शूकर दहाड़ रहे है, उस समय पर्वत पर बैठा हुआ भिक्षु ध्यान करता है---इससे बड़ा आनन्द और कुछ नही है ! ___ इसी परमानन्द को प्राप्त करने के लिए एक भिक्षु गिरिव्रज (गजगृह के समीप गृध्रकुट पर्वत) जाने का इच्छुक है । अहो ! कब में बुद्ध द्वारा प्रशंसित वन को जाऊँगा ! योगियों को प्रसन्नताकारी मत्त, कुंजरों से सेविन, रमणीय, उस वन में मैं कब प्रवेश करूंगा ! १ . यदा नभे गज्जति मेघदुन्दुभि धाराकुला विहंगपथे समन्ततो। भिक्खु च पन्भारगतो व झायति ततो रति परमतरं न विन्दति ॥ यदा नदीनं कुसुमाकुलानं . . . . . तीरे निसिनो सुमनो व झायति ततो रतिं परमतरं न विन्दति ॥ यदा निसीथे रहितम्हि कानने देवे गळन्तम्हि नदन्ति दाठिनो। भिक्खु च पन्भारगतो' व झायति ततो ति परमतरं न विन्दति ॥ गाथाएँ ५२२-५२४
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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