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________________ ( २५९ ) प्रकृति प्रेम और उसमे उत्पन्न ध्यान की इच्छा का वर्णन करते हुए कहते है :-- जब स्वच्छ पांडुर पंख वाले बगुले काले मेघ से भयभीत हुए अपनी खोहों की खोज करते हुए उड़ते हैं। उस समय बाढ़ में शब्द करती हुई यह नदी मुझे कितनी प्रिय लगती है ! ___ जब स्वच्छ पांडुर पंख वाले बगुले काले मेघ से भयभीत हुए अपनी खोहों की खोज करते हुए उड़ते हैं, और उनकी खोहें वर्षा के अन्धकार से ढंकी हुई है ! उस समय बाद में शब्द करती हुई यह नदी मुझे कितनी प्रिय लगती है ! इस नदी के दोनों ओर जामुन के पेड़ है, वहाँ मग मन कैसे न रमेगा ? महामार्ग के पीछे, नदी के किनारे पर अन्य अनेक निर्भरिणियाँ सुशोभित है । जगे हुए मेंढ़क मृदुल नाद कर रहे हैं। ___ आज गिरि और नदी से अलग होने का समय नहीं है । __ बाढ़ में शब्द करती हुई यह नदी कितनी मुरम्य, शिव और अमकारी है ! मै यहाँ ध्यान करूंगा।' 'नाज गिरिनदीहि विष्पवाससमयो' (आज गिरि और नदी से अलग होने का समय नहीं है) इस उद्गार में भिक्षु ने प्रकृति-प्रेम की उस पूरी निष्ठा को रख दिया है, जो आज तक विश्व-साहित्य में कही भी व्यक्त हुई है। - - - - - - - - - यदा बलाका सुचिपण्डरच्छदा कालस्स मेघस्स भयेन तज्जिता। पलेहिति आलयमालयेसिनी तदा नदी अजकरणी रमेति मं॥ यदा बलाका सुचिपण्डरच्छदा कालस्स मेघस्स भयेन तज्जिता। परियेसतिलेन मलेन दस्सिनी तदा नदी अजकरणी रमेति मं॥ कन्नु तत्थ न रमेन्ति जम्बुयो उभतो तहि, सोभेन्ति आपगा कूलं महालेनस्स पच्छतो॥ तामतमदसं घसुप्पहीना भेका मन्दवती पनादयन्ति नाज गिरिनदोहि विप्पवाससमयो, खेमा अजकरणी सिवा सुरम्माति॥ गाथाएँ, ३०७-३१०
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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