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________________ ( २६१ ) उस सुपुष्पित शीत वन में, गिरि और कन्दराओं में, कब मैं अकेला चंक्रमण करूँगा। अकेला, बिना साथी के, उस रमणीय महावन में, एकान्त, शीतल , पुष्पों से आच्छादित पर्वत पर, विमुक्ति-सख से मुखी , मैं गिरिव्रज में कब विचरण करूँगा ! ' एक दूसरे स्थविर (तालपट) की भी इम इच्छा को देखिये : कब में अकेला, बिना किमी साथी के. (गिरिवज के) पर्वत-कन्दराओं में ध्यान करता हुआ विचाँगा ! क्या कभी मेरे ऐसे दिन आयेंगे ? २ कब मैं एकान्त वन में विदर्शना भावना का अभ्याम करता हुआ निर्भय विचगा। क्या कभी मेरे ऐसे दिन आयेंगे ? 3 कब मैं वन के उन मार्गों पर जिन पर ऋषि (बुद्ध) चले, चलना हुँगा, और वर्षा काल के मेघ नये जल की वृष्टि सचीवर *मझ पर करते होंगे ! क्या कभी मेरे ऐसे दिन आयेंगे ?४ कब मैं वन और गिरिगुहाओं में कलँगीधारी मयूर पक्षियों की मधुर ध्वनि १. हन्द एको गमिस्सामि अरऊ बुद्धवणितं। गाथा ५३८ योगिपीतिकरं रम्मं मतकुञ्जरसे वितं ।५३९ सुपुष्फिते सीतवने सोतले गिरिकन्दरे। . . . . . . . . . . . . चंकमिस्सामि एकको ॥५४० एकाकियो अदुतियो रमणीये महावने ।५४१ विने कुसुमसञ्छन्ने पन्भारे नून सीतले। विमुत्तिसुखेन सुखितो रमिस्सामि गिरिम्बजे ॥५४५ २. कवा न हं पम्बतकन्दरासु एकाकियो अदुतियो विहस्सं।. . . . . . . .तं मे ___ इदं तं नु कदा भविस्सति ॥१०९१ ३. विपस्समानो वीतभयो विहस्सं एको वने तं नु कदा भविस्सति ॥१०९३ ४. कदा नु मं पासकालमेघो नवेन तोयेन सचीवरं मे। इसिप्पयातम्हि पथे वजन्तं ओवस्सते, तं नु कदा अविस्सति ॥११०२
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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