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________________ ( २३२ ) पुरुष ( तथागत ) ने यह कहा, ऐसा मैंने सुना ।” केवल ८१-८८, ९१-९८, और १००-१०१ संख्याओं के सूत्र इसके अपवाद हैं । बुद्ध वचनों के उद्धरण की यह विशिष्ट शैली ही इस संग्रह के "इतिवृत्तक' ( ऐसा तथागत ने कहा ) नामकरण का आधार है । 'इतिgar' के विषय - संकलन और शैली की अपनी विशेषताएँ हैं । 'इतिबुत्तक' के ११२ सुत्त चार बड़े बड़े वर्गों या निपातों में विभक्त है। पहले निपात में उन उपदेशों का संकलन है जिनका सम्बन्ध संख्या एक से है । इसी प्रकार दूसरे, तीसरे और चौथे निपातों में उन उपदेशों का संकलन है, जिनका सम्बन्ध क्रमशः दो, तीन और चार संख्याओं से है । इसीलिये इनके नाम भी क्रमशः एकक-निपात, दुक निपात, तिक-निपात और चतुक्क निपात हैं । पहले निपात में २७ सूत्र हैं, दूसरे में २२, तीमरे में ५० और चौथे में १३ । इस प्रकार सूत्रों की कुल संख्या मिलाकर ११२ है । विषय-संकलन की यह शैली आज कृत्रिम जान पड़ती है, किन्तु अध्ययन-अध्यापन के उस युग में जब सारा काम मौखिक रूप से ( मुखपाठवसेन) ही चलता था, गणनात्मक संकलन और वर्गीकरण की यह पद्धति स्मृति के लिये बड़ी सहायक सिद्ध होती थी । फलतः बौद्धों और जैनों का अधिकांश प्राचीन साहित्य इमी शैली में लिखा गया है । संस्कृत के सूत्र - साहित्य का भी उद्भावन इसी आवश्यकता के कारण हुआ । 'इतिवृत्तक' की संख्याबद्ध शैली का ही विकसित रूप हमें अंगुत्तरनिकाय और बाद में अभिधम्मपिटक में मिलता है । 'इतिवृत्तक' के विषय में यह अवश्य कहा जा सकता है कि इस गणनात्मक विधान ने उसके विषय स्वरूप की स्वाभाविकता में कोई बाधा नहीं पहुँचाई है । उसका अलंकार- विहीन सौन्दर्य हमें बुद्ध वचनों को उनके उस नसगिक रूप में, जिसमें वे उच्चरित किये गये थे, ठीक प्रकार देखने में सहायता देता है । 'इतिवृत्तक' की एक बड़ी विशेषता उसके अन्दर गद्य और पद्य दोनों का होना है । प्रत्येक सूत्र के आदि में पहले "ऐसा भगवान् ने कहा, ऐसा पूर्ण पुरुष ( अर्हत् ) ने कहा, ऐसा मैने सुना" आता है । फिर गद्य में बुद्ध वचन का उद्धरण होता है । फिर उसके बाद "भगवान् ने यह कहा । इसी सम्बन्ध में यह कहा जाता है" इस प्रस्तावना के साथ कोई गाथा या गाथाएँ आती हैं, जिनका या तो बिल
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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