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________________ उसकी समाधि-प्राप्ति (१५), महाकात्यायन की कायगता-सति की भावना (७।७) तथा कोशाम्बी के राजा उदयन के अन्तःपुर में अग्निकांड की सूचना जिसमें रानी श्यामावती (सामावती) के साथ ५०० स्त्रियाँ जल मरी (७।९)। आटवें वर्ग (पाटलि ग्राम-वर्ग) में निर्वाण-सम्बन्धी गम्भीर प्रवचन है । केवल एक को यहाँ उद्धत किया जाता है "भिक्षुओ ! वह एक आयतन है जहाँ न पृथ्वी है, न जल है. न तेज है, न वाय है, न आकाशानन्त्यायतन, न विज्ञानानन्त्यायतन, न आकिञ्चन्यायतन, न नैवमंजानामंज्ञायतन है। वहाँ न तो यह लोक है, न परलोक है, न चन्द्रमा है, न मर्य है । न तो मैं उसे 'अगति' कहता हूँ और न 'गति' । न मैं उमे स्थिति और न च्यति कहता हूँ। मैं उसे उत्पनि भी नहीं मानता। वह न तो कहीं ठहरा है. न प्रवर्तित होता है और न उसका कोई आधार है। यही दुःखों का अन्त है" (८११) आयप्मान दब्ब के निर्वाण पर भगवान ने जो उद्गार किया उमे हम पहले उद्धृत कर ही चुके हैं । वौद्ध निर्वाण के स्वरूप को समझने के लिये 'उदान' का आठवाँ वर्ग भूरि भूरि पढ़ने और मनन करने योग्य है । भगवान के चन्द सोनार के यहाँ अन्तिम भोजन करने को भी इस वर्ग में वर्णन है, जो महापरिनिब्बाण-मुत्त (दीघ० २।३) के समान ही है। इतिवृत्तक' 'इतिवृत्तक' खड्क-निकाय का चौथा ग्रन्थ है । यह ग्रन्थ गद्य और पद्य दोनों में है। 'इतिवृत्तक' का अर्थ है 'ऐमा कहा गया' या 'ऐसा तथागत ने कहा। 'इतिवृत्तक' में भगवान बुद्ध के ११२ प्रवचनों का संग्रह है। ये सभी प्रवचन अत्यन्त लघु आकार के और नैतिक विषयों पर हैं। 'इतिवृत्तक' का प्रायः प्रत्येक सूत्र इन शब्दों के साथ आरम्भ होता है-“भगवान् (बुद्ध) ने यह कहा, पूर्ण १. महापंडित राहुल सांकृत्यायन, भवन्त आनन्द कौसल्यायन तथा भिक्षु जगदीश काश्यप द्वारा देवनागरी लिपि में सम्पादित । उत्तम भिक्षु द्वारा प्रकाशित, १९३७ ई० । इस ग्रन्थ के गद्य-भाग का अनुवाद प्रस्तुत लेखक ने 'ऐसा तथागत ने कहा' शीर्षक से किया है।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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