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________________ है (४५) । भव-तृष्णा मिट जाने से ही मुक्ति होती है, इस अर्थ का एक उदान भी भगवान् ने यहीं किया है (४।१०) । पाँचवें वर्ग (शोण स्थविर सम्बन्धी वर्ग) में शोण नामक भिक्षु के संघ-प्रवेश, अर्हत्त्व-प्राप्ति आदि का वर्णन है। इमी वर्ग में कोगलराज प्रसेनजित् का बुद्ध के दर्शनार्थ जेतवन-आगम में जाना (५।२) तथा सुप्रबुद्ध नामक कोढ़ी की उपासक (गृहस्थ-शिष्य) के रूप में दीक्षा (५।३) का भी वर्णन है । छठे वर्ग (जात्यन्व-वर्ग) में जात्यन्ध पुरुषों को हाथी दिग्वाये जाने की कथा है। इस कथा का प्रवचन भगवान ने श्रावस्ती के जेतवन-आराम में दिया। अनेक अन्धे हाथी को देखते है, किन्तु उसके पूरे स्वरूप को कोई नहीं देख पाता। जो जिस अंग को देखता है वह उसका वैमा ही रूप बताता है। "भिक्षओ ! जिन जात्यन्धों ने हाथी के शिर को पकड़ा था, उन्होंने कहा, 'हाथी ऐमा है जैसे कोई बडा घड़ा' । जिन्होंने उसके कान को पकड़ा था उन्होंने कहा 'हाथी ऐसा है जैसे कोई मप' । जिन्होंने उसके दाँत को पकड़ा . था, उन्होंने कहा 'हाथी ऐसा है जैसे कोई खुंटा' । जिन्होंने उसके शरीर को पकड़ा था उन्होंने कहा, 'हाथी ऐसा है जैसे कोई कोठी' आदि । इस प्रकार अन्धे आपस में लड़ने-भिड़ने लगे और कहने लगे हाथी ऐमा है, वैसा नहीं, वैसा है, ऐसा नहीं। यही हालत मिथ्यामतवादों में फंसे हए लोगों की है। कोई कहते हैं 'लोक शाश्वत है, यही मत्य है, दूसरा बिलकुल झूठ' कोई कहते है 'लोक अशाश्वत है, यही सत्य है दूसरा बिलकुल झूठ' आदि ।" कितने श्रमण और ब्राह्मण इसी में जूझे रहते है। (धर्म के केवल) एक अङ्ग को देख कर वे आपस में विवाद करते हैं।" उपर्युक्त दृष्टान्त बौद्ध साहित्य में बहुत प्रसिद्ध है। संस्कृत में भी 'अन्धगजन्याय' प्रसिद्ध है । जैन-साहित्य में भी यह सिद्धान्त विदित है। मानवीय बुद्धि की अल्पता और सर्व-धर्म-समन्वय की दृष्टि से यह दृष्टान्त इतना महत्त्वपूर्ण है कि प्रसिद्ध सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने भी इसका उद्धरण अपने 'अखरावट' में दिया है “सुनि हाथी कर नाँव अँधन टोआ धायक । जो देखा जेहि ठाँव मुहम्मद सो तैमेहि कहा।" विश्व का धार्मिक साहित्य इम बहुमूल्य दृष्टान्त के लिये अपने मूल रूप में बौद्ध साहित्य का ही ऋणी है, इसमें बिलकुल भी सन्देह नहीं । सातवें वर्ग ( चुलवर्ग ) में अनेक स्फुट बातों का वर्णन है, यथा लंकुटक भट्टिय नामक भिक्ष को मारिपुत्र का उपदेश (२) और
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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