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________________ ( २०२ ) अंकित होती हुई', अविच्छिन्न म्प मे मिलिन्दपह'२ (प्रथम शताब्दी ई० पू०) तक दृष्टिगोचर होती है। 'पंचम' निकाय के अस्तित्व के बिना यह असम्भव है। अत: यह निश्चित है कि प्रथम मंगीति के ममय मे ही, जब कि दीघ-भाणक और मज्झिम-भागक भिक्षुओं में खट्टक-निकाय के विषय में मतभेद प्रारम्भ हुआ, बदक-निकाय का मंकलन होने लगा था, किन्तु प्रथम चार निकायों में इसका अन्तर केवल इतना था कि जब कि उनका म्वम्प उमी ममय स्थिर हो गया था, बदक-निकाय में तृतीय मंगीति तक परिवर्द्धन होते गये । अतः प्रथम और ततीय मंगीतियाँ उसके प्रणयन या मंकलन काल की क्रमशः उपग्ली और निचली काल-मीमाएं है । इस मामान्य कथन के बाद अब हमें बद्दक-निकाय के १५ ग्रन्थों की पूर्वापरता पर विचार करना है। वाह्य माक्ष्य के आधार पर हम किन ग्रन्थों को कम या अधिक प्रामाणिक मान सकते हैं. इमका दिग्दर्शन करने के लिये हमें उन परम्पराओं को देखना है. जो खुदक-निकाय की प्रामाणिकता के विषय में पालिमाहित्य के इतिहास में चल पड़ी हैं। इन्हें इस प्रकार दिखाया जा सकता है-- (१) प्रथम संगीति के अवसर पर दीव-भाणक भिक्षुओं ने जिन ग्रन्थों को प्रामाणिक नहीं माना--(१) बुद्धवंस (२) चरियापिटक (३) अपदान । (२) द्वितीय संगीति के अवसर पर महासंगीतिक भिक्षुओं ने जिन ग्रन्थों को प्रामाणिक नहीं माना--(१) पटिमम्भिदामग्ग (२) निद्देम (३) जातक के कुछ अंग (३) स्यामी परम्परा जिन्हें बुद्ध-वचन के रूप में प्रामाणिक नहीं समझती(१) विमानवत्थु (२) पेतवत्थु (३) थेरगाथा (४) थेरीगाथा (५) जातक (६) अपदान (७) बुद्धवंस (८) चरियापिटक। जिन ग्रन्थों को दीघ-भाणक भिक्षुओं ने प्रामाणिक स्वीकार नहीं किया वे सभी स्यामी परम्परा द्वारा बहिष्कृत ग्रंथों की सूची में भी सम्मिलित हैं। महासंगीतिक भिक्षुओं ने जातक के कुछ अंशों को भी प्रामाणिक नहीं समझा और १. देखिये रायस डेविड्स : बुद्धिस्ट इंडिया, पृष्ठ १६९ २. पृष्ठ २३ (बम्बई विश्वविद्यालय कामाकरण)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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