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________________ ( २०३ ) स्यामी परम्पग भी इसमें उसके समान ही है । पटिमम्भिदामग्ग और निद्देम को महासंगीतिक भिक्षुओं ने अवश्य प्रामाणिक स्वीकार नही किया जव कि स्यामी परम्परा में उन्हें प्रामाणिक मान लिया गया है। यदि हम सम्पूर्ण उपर्युक्त बहिप्कृत ग्रन्थों को मिलाकर गिनें तो अप्रमाणिक ग्रन्थों की यह सूची इस प्रकार होगी (१) विमानवत्थु (२) पेनवत्थ (३) थेग्गाथा (८) थेरीगाथा (५) जातक (६) अपदान (७) बुद्धवंस (८) चग्यिापिटक (०.) पटिमम्भिदामगंग और (१०) निद्देम । खुद्दक-निकाय के १५ ग्रन्थों में मे इन्हें निकाल दें तो वाकी ये बच रहते है (१) खुदक-पाट (२) धम्मपद (३) मुत्त-निपात (४) उदान और (५) इतिवृत्तक । अत: वाह्य माश्य के आधार पर उपयुक्त पाँच ग्रन्थ ही अन्य १० की अपेक्षा अधिक प्रामाणिक बुद्ध-वचन ठहरते हैं। खुदक-पाठ को छोड़कर गेप चार ग्रन्थ चीनी अनवाद में भी उपलब्ध हैं। आन्तरिक साक्ष्य भी इमी निष्कर्ष का अधिकतर समर्थन करता है। भाषा और विषय दोनों की दृष्टि से धम्मपद, मुत्न-निपात, उदान और इतिवृत्तक प्राचीनतम युग के सूचक है। इनकी विषय-वस्तु का जो विवेचन आगे किया जायगा, उससे यह तथ्य स्पष्ट हो जायगा। खुद्दक-पाठ अवश्य वाद का संकलन जान पड़ता है। उसमें कुछ सामग्री सुत्त-निपात से ली गई है और कुछ त्रिपिटक के अन्य अंशों मे। शरण-त्रय और शरीर के ३२ अङ्गों के विवरण जो इस संकलन में है, चार निकायों में प्राप्त विवरणों से कुछ अधिक विकमित अवस्था के सूचक है।' अत: खुद्दक-पाठ का स्थान भी काल-क्रम की दृष्टि से १. देखिये विमलाचरण लाहा : हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ ३५; वास्तव में शरण त्रय के सम्बन्ध में तो ऐसा कोई अन्तर नहीं है, क्योंकि 'बुद्धं सरणं गच्छामि' आदि के बाद वहाँ केवल 'दुतियम्पि' (दूसरी बार भी) 'ततियप्पि' (तीसरी बार भी) अधिक है। हाँ, शरीर के ३२ अंगों के कथन में 'मत्थके मत्थलंगति' (मस्तक का गदा) पद अवश्य अधिक है। प्रथम चार निकायों में केवल ३१ अंगों का ही वर्णन है ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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