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________________ ( २०१ ) रता को काव्योचित भावनाओं और कल्पनाओं में खो देना पसन्द नहीं करती थी। विनय-पिटक के चुल्लवग्ग में बुद्ध उपदेशों को गीतों की तरह गाना स्पष्ट रूप से निषिद्ध किया गया है और उसे अपराध बतलाया गया है । गम्भीर अनात्मदर्शन पर प्रतिष्ठित बुद्ध वचनों को भावात्मक कविताओं में गाना स्थविरवादी परम्परा संघ के लिये एक आने वाली विपत्ति समझती थी । " खुद्दक निकाय के ग्रन्थों में इसी विपत्ति के दर्शन हुए हैं, विटरनित्ज़ का यह समझना ? यद्यपि ठीक नहीं माना जा सकना, किन्तु यह उसके अपेक्षाकृत उत्तरकालीन होने का सूचक तो है ही । खुद्दक निकाय का अधिकांश स्वरूप काव्यात्मक होते हुए भी उसकी मूल भावना सर्वांश में बौद्ध है। बल्कि उसकी गाथाओं में अनेक तो पिटक संकलन के प्राचीनतम युग की सूचक भी हैं। उनके सर्वांश में बुद्ध वचन होने का दावा तो स्वयं खुद्दक निकाय में भी नहीं किया गया, क्योंकि थेर-थेरी गाथाओं जैसी रचनाओं को वहाँ स्पष्टत. भिक्षु भिक्षुजियों की कृतियाँ कहा गया है । वास्तव में बात यह है कि तत्कालीन लोकसाहित्य और भावनाओं का प्रभाव खुद्दक निकाय के कुछ ग्रन्थों (विशेषतः विमानवत्थु, पेतवत्थु, जातक, चरियापिटक आदि) में अधिक परिलक्षित होता है, जो उनकी आपेक्षिक अर्वाचीनता का सूचक अवश्य है, किन्तु साहित्य और इतिहास विद्यार्थी के लिये इसी दृष्टि से उसका महत्व भी बढ़ गया है। पालि के सर्वोतम काव्य-उद्गार खुद्दक निकाय के ग्रन्थों में ही सन्निहित हैं और उनका प्रणयन मानवीय तत्त्वों के आधार पर निश्चय ही चार निकायों के बाद हुआ है, यद्यपि उनमें से अनेक अत्यन्त प्राचीन युग के भी है, यह भी उतना ही सुनिश्चित तथ्य है । इसका एक स्पष्टतम प्रमाण तो यही है कि 'पंचनेकायिक' भिक्षुओं की परम्परा विनय-पिटक -- चुल्लवग्ग से आरम्भ होकर, भारहुत और साँची के स्तूपों (तृतीय शताब्दी या कम से कम २५० वर्ष ईसवी पूर्व ) में १. देखिये ओपम्म- संयुत्त (संयुत्त निकाय) एवं अंगुत्तर निकाय के अनागतभय-सूत्र २. हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी पृष्ठ ७७
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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