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________________ ( २०० ) प्रकाशित त्रिपिटक के स्यामी संस्करण में ये आठ ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं--विमानवत्थ, पेतवत्थु, थेरगाथा, थेरीगाथा, जातक, अपदान, वृद्धवंस और चरियापिटक । विंटरनित्ज ने कहा है कि यह वात आकस्मिक नहीं हो सकती। इससे उनका तात्पर्य यह है कि स्याम में ये ग्रन्थ बुद्ध-वचन के रूप में प्रामाणिक नहीं माने जाते। कम से कम उनका अल्प महत्व तो निश्चित है ही। खुद्दक निकाय के ग्रन्थों का काल-क्रम ऊपर के विवेचन से स्पष्ट है कि खुद्दक-निकाय पहले चार निकायों के बाद का संकलन है। वुद्ध-वचन के रूप में उसका महत्त्व भी उनके बाद ही मानना चाहिये। चीनी आगमों में तो उसे एक प्रकार स्वतन्त्र निकाय का स्थान ही नहीं मिला। केवल कुछ स्फुट ग्रन्थों के पाये जाने के कारण ही वहाँ 'क्षुद्रकागम' के अस्तित्व का अनुमान कर लिया गया है २ । ये ग्रन्थ भी वहाँ कभी कभी अन्य निकायों में ही सम्मिलित कर दिये जाते है । अतः स्थविरवादी और सर्वास्तिवादी दोनों ही परम्पराओं में प्रथम चार निकायों की प्रधानता, पालि. त्रिपिटक में उसके स्वरूप की बहुत-कुछ अनिश्चितता, सर्वास्तिवादी त्रिपिटक में उसके स्वतन्त्र रूप की अ-प्राप्ति अथवा आंशिक प्राप्ति, एवं सब से बढ़ कर स्थविरवादी परम्परा में भी उसके कुछ ग्रन्थों को वुद्ध-वचन के रूप में प्रामाणिक न मानने की ओर प्रवृत्ति, ये सब तथ्य इसी बात के सूचक हैं कि खुद्दक-निकाय प्रथम चार निकायों के बाद का संकलन है। विचारों के विकास की दप्टि से भी इसी निष्कर्ष पर आना पड़ता है। प्रथम चार निकायों में विवेकवाद की प्रधानता है। खुद्दक-निकाय में काव्यात्मक तत्त्व का आधार लेकर भावुकता भी काफी प्रधानता लिये हुए है। स्थविरवादी परम्परा बुद्ध-वचनों की गम्भी १. हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ७७ पद-संकेत ३ २. देखिये पहले इसी अध्याय में 'पालित्रिपिटक कहाँ तक मूल, प्रामाणिक बुद्ध वचन है' ? इसका विवेचन । ३. देखिये ट्रांजैक्शन्स ऑव दि एशियाटिक सोसायटी ऑव जापान, जिल्द ३५, भाग ३, पृष्ठ ९ में प्रो० एम० अनेसाकि का लेख, विटरनिरज, : हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ७७, पद-संकेत २ में उद्धृत ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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