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________________ हनन, केवली, कुशल, ज्ञानावरणीयकर्म, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सर्व, क्षीणक्लेश, चरमदेह आदि । ___ २ प्रसुप्त, तनु आदिक्लेशावस्था, पाँच यम, योगज १ योगसूत्र (२-२७) भाष्य, तत्त्वार्थ (अ० ६-१४ ) । २ देखो योगसूत्र (२-२७) भाष्य, तथा दशवैकालिकनियुक्ति गाथा १८६ । ३ देखो योगसूत्र (२-५१ ) भाष्य, तथा अावश्यकनियुक्ति गाथा ८६३ । ४ योगसूत्र (२-२८) भाष्य, तत्त्वार्थ (अ० १-१) । ५ योगसूत्र (४-१५) भाष्य, तत्त्वार्थ (अ० १-२) । ६ योगसूत्र ( ३-४९) भाष्य, तत्त्वार्थ (३-४९) । ७ योगसूत्र (१-४) भाष्य । जैन शास्त्रमें बहया क्षीणमोह 'तीणकपाय' शब्द मिलते हैं। देखो तत्त्वार्थ (अ०९-३८)। ८ योगसूत्र (२-४) भाष्य, तत्त्वार्थ (अ० २-५२)। ६ प्रसुप्त, तनु, विच्छिन्न और उदार इन चार अवस्थाओं का योगसूत्र (२-४ ) में वर्णन है । जैनशास्त्रमें वही भाव मोहनीयकर्मकी सत्ता, उपशमक्षयोपशम, विरोधिप्रकृतिके उदयादिकृत व्यवधान और उदयावस्थाके वर्णनरूपमे वर्तमान है। देखो योगसूत्र (२-४) की यशोविजयकृत वृत्ति । १० पाँच यनोंका वर्णन महाभारत आदि प्रन्थोमें है मदी, पर
SR No.010623
Book TitlePatanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1922
Total Pages249
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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