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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काष्ठासंघ-नन्दीतट गच्छ इस गच्छ का नाम नन्दीतट ग्राम ( वर्तमान नान्देड-बम्बई राज्य ) पर से लिया गया है। देवसेन कृत दर्शनसार के अनुसार यहीं कुमारसेन ने काष्टासंघ की स्थापना की थी (ले. ६४७ ) । इस गच्छ . का दूसरा विशेषण विद्यागण है जो स्पष्टतः सरस्वतीगच्छ का अनुकरण मात्र है । तीसरा विशेषण रामसेनान्वय है । इन के विषय में कहा गया है कि नरसिंहपुरा जाति की स्थापना इन ने की तथा उस शहर में शान्ति-' नाथ का मन्दिर बनवाया ( ले. ६४८-४९ )। इन के शिष्य नेमिसेन ने पद्मावती की आराधना की तथा भट्टपुरा जाति की स्थापना की (ले. ६५०)। इतिहास काल में रत्नकीर्ति के पट्टशिष्य लक्ष्मीसेन से नन्दीतट गच्छ का वृत्तान्त उपलब्ध होता है । १२० इन के दो शिष्यों से दो परम्पराएं आरम्भ हुईं । भीमसेन और धर्मसेन ये इन दो शिष्यों के नाम थे । भीमसेन के पट्टशिष्य सोमकीर्ति हुए। आप ने संवत् १५३२ में वीरसेनसूरि के साथ एक शीतलनाथ मूर्ति स्थापित की (ले. ६५१ ), संवत् १५३६ में गोदिली में यशोधरचरित की रचना पूरी की (ले. ६५२ ) तथा संवत् १५४० में एक मूर्ति स्थापित की (ले. ६५३ )। आप ने सुलतान पिरोजशाह के राज्यकाल में पावागढ में पद्मावती की कृपा से आकाश गमन का चमत्कार दिखलाया था ( ले. ६५४ )।११८ सोमकीर्ति के बाद क्रमशः विजयसेन, यशःकीर्ति, उदयसेन,त्रिभुवनकीर्ति तथा रत्नभूषण भट्टारक हुए । रत्नभूषण के शिष्य कृष्णदास ने कल्पवल्ली ११ पुर में संवत् १६७४ में विमलनाथपुराण की रचना की। इन के पिता का नाम हर्षसाह तथा माता का नाम वीरिका था । (ले. १२७ रत्न कीर्ति के पहले पट्टावली में उपलब्ध होनेवाले नामों के लिए देखिए- दानवीर माणिकचन्द्र पृ. ४७ . १२८ सोमकीर्ति ने प्रद्युम्नचरित तथा सप्तव्यसन कथा इन दो ग्रन्थों की रचना क्रमश: संवत् १५३१ तथा संवत् १५२६ में की थी (अनेकान्त वर्ष १२ पृ. २८) १२९ कलोल ( जिला पंचमहाल- गुजरात ) For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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