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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ भट्टारक संप्रदाय [७६३ -- सकलकीर्ति सोभत गछपति महाछवि छाजे । तस पदमधुकर जाणि ब्रह्म चंद्र अनुराजे ॥ बुधि ओछी विस्तार बहु पंडित जन सब समझ करी। भमाभाव तुम्हे कीजिए चैत्य बावनी अनुसरी ।। ५६ ( ना. १२३) लेखांक ७६४ - सरस्वतीमूर्ति देवेंद्रकीर्ति संवत् १८८१ वर्षे माघ मासे शुद्ध ५ सोम श्रीकाष्ठासंघे भ. सुरेंद्रकीर्ति तत्पट्टे भ. देवेंद्रकीर्ति राजोमान ज्ञाति बघेरवाल... || (ना. ५०) लेखांक ७६५ - नवग्रहयन्त्र संवत १८८५ मार्गशिर्ष बद १२ गुरु दिने श्रीकाष्टासंघे लाडबागडगच्छे भ. प्रतापकीर्ति आनाये नंदीतटगच्छे भ. सुरेंद्रकीर्ति तत्पट्टे भ. देवेंद्रकीर्ति राज्यमान ज्ञाति बघेरवाल गोत्र बोरखंड्या सा खेमासा सुत पूनासा यंत्रं प्रणमंति ॥ (मा. स. महाजन, नागपुर ) लेखांक ७६६ - पुरन्दर-व्रतकथा काष्ठासंघ उद्योतनिधान । सुरेंद्रकीर्ति गुरु तास बखाण || तस पट्टे अति रलियावनी । देवेंद्रकीर्ति यतिशिरोमणी ।। ५७ तास सेवक बोले सुजान । खेमा सुत सा पूना वान ॥ मंदबुद्धि अक्षर जो सही । कर लीज्यो तुम्हे सुद्धे सही ।। ५८ (म. ४६) For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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