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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org काष्ठासंघ - माथुरगच्छ २४.३ .११३ शुभचन्द्र ने संवत् १५३० में ग्वालियर में कीर्तिसिंह के राज्यकाल' में एक मूर्ति स्थापित की (ले. ५९३ ) | रहधू रचित " हरिवंशपुराण से पता चलता है कि इन का मठ सोनागिरि में था ( ले. ५९४ ) । इन के शिष्य यश:सेन ने संवत् १६३९ में एक दशलक्षण यन्त्र स्थापित किया (ले. ५९५ ) । कमलकीर्ति के दूसरे पट्टशिष्य कुमारसेन हुए । इन के शिष्य हेमचन्द्र थे | कवि राजमल्ल इन्ही की आम्नाय के थे 1 ११५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हेमचन्द्र के शिष्य पद्मनन्दि हुए । इन के शिष्य माणिक्कराज ने संवत् १५७६ में अमरसेनचरित की रचना पूर्ण की ( ले. ५९६ ) । पद्मनन्दी के शिष्य यशः कीर्ति हुए । इन के समय संवत् १५७२ में केशरियाजी में सभामंडप बनवाया गया ( ले. ५९७ ) । कवि राजमल्ल के कथनानुसार यशः कीर्ति ने दीर्घ काल तक नीरस आहार का ही सेवन किया था (ले. ५९८ ) | यशःकीर्ति के पट्टशिष्य दो हुए गुणचन्द्र और क्षेमकीर्ति । गुणचन्द्र के शिष्य सकलचन्द्र और उन के शिष्य महेन्द्रसेन हुए । इन के शिष्य भगवतीदास ने जहांगीर के राज्यकाल में संवत् १६८० में मुगति शिरोमणि चूनडी, शाहजहां के राज्यकाल में संवत् १६८७ में अनेकार्थ नाममाला, संवत् १६९४ में ज्योतिषसार, वैद्यविनोद, बृहत् सीता सतु तथा लघु सीता सतु की रचना की ( ले. ५९९-६०३ ) | नवांक केवली तथा द्वात्रिंशदिन्द्र केवली इन शकुन ग्रन्थों की प्रतिलिपियां इन ने की थीं (ले. ६०४ - ६०५ ) )4 यशः कीर्ति के दूसरे पट्टशिष्य क्षेमकीर्ति थे । इन के समय संवत् १६४१ में पण्डित राजमल्ल ने डौकनी निवासी साह फामन के लिए लाटी संहिता नामक ग्रन्थ लिखा ( ले. ६०६ ) उस समय अकबर का ११३ देखिए पूर्वोक्त नोट १०४ ११४ देखिए पूर्वोक्त नोट १०३ ११५ देखिए पूर्वोक्त नोट १०९ For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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